"ओजोन लेयर कैन ऋ -कूप बाई २०४८ "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई सितम्बर २२ ,२०१० ,पृष्ठ २३ )।
संयुक्त राष्ट्र की एक विज्ञप्ति के अनुसार, ओजोन कवच का टूटना रुक गया है और ओजोन की परत २०४८ तक अपने नुक्सान की भरपाई कर लेगी ।
एक दौर था जब शीतलक पदार्थों के रूप में फ्रिज में ही १०० किस्म के एरो -सोल्स चलन में थे .गेजेट्स ऐसी एक नहीं अनेक थीं .इनके चलन के स्थगित रहने के साथ ही ओजोनमंडल की परतों का छीजना भी कमतर होता चला गया .यह सब एक अंतर -राष्ट्रीय सहकार से ही मुमकिन हुआ और इसी के साथ चमड़ी कैंसर के दसियों लाख मामले टल गये ।
अनुमान है ध्रुवीय क्षेत्र के बाहर की ओजोन परतें २०४८ तक १९८० से पहले का स्तर प्राप्त कर लेंगीं ।
हालाकि हर साल पतझर के मौसम में जो दक्षिणी गंगोत्री क्षेत्र (अन्टार्क्टिक )के ऊपर जो ओजोन सूराख पैदा हो जाता है उसकी भरपाई होते होते २०७३ तक ही हो पाएगी ।
गत चार सालों में प्रस्तुत रिपोर्ट एक व्यापक अपडेट की खबर देती है जिसमे ओजोन कवच की सलामती के लिए वियेना बैठक तथा मोंट्रियल संधि के तहत कौन कौन से रसायन चरण बद्ध तरीके से हठाये गयें हैं चलन से बाहर हुएँ हैं इसका खुलासा किया गया है .यही रसायन एक तरफ ओजोन कवच के छीजने दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की भी नींव रख रहे थे .
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
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