हर कोई जानता है और अच्छी तरह मानता है ,टहलकदमी बुढ़ाते शरीर को लचीला और फुर्तीला बनाए रखती है लेकिन हर कोई शायद नहीं भी जानता वाल्किंग दिमाग को भी सुनम्य(सपिल )बनाए रहती है .शरीर और चित्त दोनों लचीले बने रहतें हैं ।
रिसर्च बतलाती है टहल कदमी दिमागी सर्किट्स में परस्पर बेहतर संचार के पुल बनाए रहती है .बुढ़ाने की प्रक्रिया में दिमागी सर्किट्स का क्षय शुरू हो जाता है .न्यूरोन से न्यूरोन की बात उतनी साफ़ नहीं हो पाती .कनेक्टिविटी का पेट्रनउम्र के साथ छीजने लगता है .बालों के पकने के साथ और भी बहुत कुछ छीजने लगता है .अध्ययन के अगुवा यूनिवर्सिटी इल्लिनोइस , उर्बना -चम्पैग्न कैम्पस, ऐसाही मानतें हैं उम्र के साथ नेटवर्क्स उतने कसावदार धारदार नहीं रह जातें हैं जैसी हमारी गति -विधि के अनुरूप रहने चाहिए .मसलन ड्राइविंग के समय कनेक्टिविटी उतनी बढ़िया नहीं रह जाती है ।
लेकिन वातापेक्षी व्यायाम के साथ ही ,एरोबिक्स के साथ ही एक सममिति एक ताल मेल इन नेटवर्क्स में बैठने लगता है .सुबोध और सुसंगत होने लगतें हैं दिमागी सर्किट्स . एक समानुपातिक अंतर -सम्बन्ध पनपने लगता है परस्पर .
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
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