सोमवार, 13 सितंबर 2010

भैंसा लाल कपड़ा देख कर क्यों भड़कता है ?

जहां तक लाल कपडे का सवाल है तो आपको बतलादें बुल भी (जंगली भैंसा )कलर ब्लाइंड होता है अन्य स्तनपाई पशुओं की तरह .अलबत्ता कपडे की तेज़ हलचल उसे अतिरिक्त उत्तेजना से भर देती है उसे लगता है उसका जानी दुश्मन "मट- डोर"उसकी जान ही लेलेगा उसपर धावा बोलने जा रहा है .बचाव में वह वार करता है .आखिर बुल फाईट में मट -डोर का मकसद बुल को मारना ही होता है .खतरनाक स्पोर्ट्स है यह .जो एक लोक उत्सव का रूप ले चुका है .कई तरफ से इसके खिलाफ आवाजें उठ चुकी हैं जिनमे एनीमल एक्टिविस्ट भी शामिल हैं .निरीह पशु के साथ यह खिलवाड़ तो है ही .ऊंटों की दौड़ भी इस दौर की एक और त्रासदी है ,गरीबी के साथ क्रूर ,निस्संग मज़ाक है ।
कलर ब्लाइंडनेस एक ऐसी स्थिति है जिससे मनुष्य भी ग्रस्त होता है .कलर ब्लाइंड व्यक्ति प्राइमरी कलर्स में भेद नहीं कर सकता .रंगों के प्रति उसकी कोंस (चंद रंग संवेदी कोशायें )खराब होतीं हैं .या तो लाल ,या फिर हरे रंग के प्रति संवेदी कोन या फिर पीले के प्रति संवेदी भी .ऐसे व्यक्ति को लाल और हरी बत्ती का फर्क पता नहीं चलता चौराहों पर ,लाईट सिग्नल्स की शिनाख्त नहीं कर सकता ऐसा व्यक्ति .अलबत्ता यदि उसकी एक कोनलाल ही खराब है तब शेष दो रंगों का मिश्र एक अन्य ही रंग उसे लाल के स्थान पर धब्बा सा प्रतीत होता है .हरे रंग के प्रति संवेदी कोन खराब होने पर उसके दृश्य जगत से हरा गायब हो जाता है .तीनों ही कोन खराब होने पर उसके जीवन में रंगों का ही अस्तित्व समाप्त हो जाता है .

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