व्हाट इज ए री -हुक ?/ओपन स्पेस ,सन्डे टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर २६ ,२०१० ,पृष्ठ २८ )।
साइकियेट्री में एक टर्म यूज़ होता है "हुकिंग ".मनोरोगियों की मनो -रोगों में प्रयुक्त दवाओं से (एंटी -डिप्रेसेंट्स ,एंटी -ओब्सेसिव ,न्यूरो -लेप्तिक ,साईं -कोटिक )दवाओं से हुकिंग हो जाती है यानी दवाओं के बिना वह रह नहीं पाता जब तक वह दवा नहीं खा लेता उसे चैन नहीं आता ।
एक और भी सन्दर्भ है री -हुक का .आपको याद होगा एम् ऍफ़ हुसैन साहिब ने" हम आपके हैं कौन "फिल्म ७० -७५ बार देखी यह एक और तरह की री -हुकिंग थी .माधुरी दीक्षित का रूप लावन्य,देह -यस -टी ,अप्रतिम सौन्दर्य (फिगर )फेस ब्यूटी हुसैन साहिब के दिलो दिमाग पर हावी हो गई थी ।
इन दिनों "दबंग "के साथ भी यही हो रहा है ।"तेरे मस्त मस्त दो नैन हों "या "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए" दर्शकों को बारहा सिनेमा हाल की और खींच रहें हैं .
री -हुक एक ऐसी फिल्म को कहा जासकता है जिसे बारहा देखने से भी आपका जी नहीं भरता ,तलब बढती है .बढती रहती है बार बार देखने के बाद भी ।
यही ब्लोक बस्टर्स फिल्म द्वारा बे शुमार धन राशि बटोरने कमाने की वजह बनतीं हैं ..बनती रहीं हैं देशी विदेशी सिनेमा में ।
मुगले -आज़म से लेकर शोले तक ,"गोन विद दी विंड "टाइटेनिक "से लेकर तक "इंसेप्शन "तह यही होता रहा है हो रहा है .कई बार फिल्म की कथा ,कथानक और प्लाट ही इतना उलझा हुआ प्रतीत होता है ,बारहा देखना ,हर बार थोड़ा थोड़ा समझना मजबूरी हो जाती दर्शक की, यही तो वह जादू है जो सिर चढ़ के बोलता है इस जादू का ही दूसरा नाम है "री -हुक "क्या समझे आप ?
रविवार, 26 सितंबर 2010
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