सुबह की सैर पर वह मुझसे पूछ बैठे :आप स्टिक क्यों लेतें हैं ?बातों का सिलसिला आगे बढा ,पता चला दिमागी रोगों की वजह वह आत्मा की खलल को मानतें हैं चंद दिमागी रसायनों (बायो -केमिकल्स )के असंतुलन को नहीं मानतें हैं .मनस्तत्व और व्यक्ति या उसका चित्त काया से अलग ,दिमाग से अलग एक सत्ता है .चलते चलते उन्होंने मुझे एक स्वरचित पुस्तक पकड़ा दी जिसे मैं पढ़े बिना ना रह सका .एम् एन मठ -रानी साहिब जिनकी उम्र फिलवक्त बकौल उनके ८२ बरस है नोफ्रा (नेवी नगर ,कोलाबा )तट बंध पर (पोमिनेड़)पर रोज़ सैर को आतें हैं .पेशे से एक उद्योग पति हैं .एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी के मालिक हैं .प्रस्तुत हैं उनकी पुस्तक का सार तत्व .मुझे लगा इस सामिग्री में कुछ नया पन है .
do naveen रिसर्चों का यहाँ मथरानी उल्लेख करतें हैं एक बुद्धि (प्रज्ञा ,समझने सीखने सोचने की क्षमता से ताल्लुक रखती है दूसरी हमारे व्यवहार से ,आचरण से .चिकित्सकों द्वारा हाल ही में संपन्न इन दोनों शोध कार्यो का ब्योरा डिस्कवरी चैनल ने प्रस्तुत किया है .सार तत्व यह है :मनस्तत्व ,व्यक्ति या उसका चित्त दिमागी संरचना का हिस्सा नहीं है .माइंड (चित्त )साइकिक है .हिन्दू दर्शन में इसे ही आत्मा कहा गया है ।
बुद्धि से ताल्लुक रखने वाली रिसर्च में साइंसदानों ने एक नोबेल पुरूस्कार विजेता और दो आमजनों के दिमाग कीबुनावट की ,संरचनात्मक तुलना बारीकी से की .साइंसदान बुद्धि तत्व को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके ।
मथरानी कहतें हैं ,इंटेलिजेंस मेटीरियल ब्रेन का गुण धर्म नहीं है ,साईकिकल माइंड (चित्त ,आत्मा )का गुण धर्म है .जब शरीर क्षीण प्राय हो नष्ट हो जाता आत्मा शरीर छोड़ जाती है .यह सारा बुद्धि तत्व (इंटेलिजेंस )भी साथ ले जाती है ।
जब इस आत्मा को किसी नवजात का शरीर मिलता है वह शिशु बुद्धिमान ही पैदा होता है .गुण धर्म साथ लाया है .आपने देखा होगा कुछ बच्चे जन्म से ही बड़े कुशाग्र होतें हैं,दूसरे कई मंद बुद्धि भी पैदा होतें हैं .(इसीलिए कहा गया पूत के पाँव पालने में ही दीख जातें हैं और यह भी "होनहार बिरवान के होत चीकने पात ".सारा खेल इस बात का है किस गुण धर्म श्रेणी की आत्मा नवजात को नसीब हुई है ।
डिस्कवरी पर प्रदर्शित डोक्यु -मेन -ट्री सेल्फ पर रखे स्मृति वर्धक नुश्खों को भी नाकारा और फ़िज़ूल बतलाती है .और इनसे होना भी क्या था माइंड तो बकौल मथरानी के साइकिक है ,पदार्थीय नहीं है .अशरीरी है ।
व्यवहार वाद संबंधी शोध तीन तरह के जुड़वां बच्चोंके सेट्स का ज़िक्र करती है .तीनों ही जोड़े आई -डेन -टी -कल ट्विन्स हैं .
पहले सेट के जुड़वां व्यवहार में यकसां हैं जीवन के प्रति एक ही नज़रिया रखतें हैं .दूसरे सेट के जुड़वां व्यवहार और नज़रिए में एकदम से परस्पर भिन्न हैं और तीसरे सेट के सियामीज़ ट्विन्स हैं .उनके सिर (हेड्स ) जुड़े हुएँ हैं ,दिमाग भी परस्पर सम्बद्ध हैं .कनेक -टिड हैं .लेकिन दोनों का व्यवहार जुदा है नज़रिया भी यकसां नहीं है .जुड़वां शरीर में आत्मा जुदा हैं .उनका स्वभाव संस्कार गुणधर्म भिन्न है .चिकित्सक इनकी काया से किसी नतीजे पर पहुंचना चाहते थे .लेकिन आत्मा तो गैर -शरीरी है ।
एक और डोक्यु -मेन -ट्री पुनर्जन्म से ताल्लुक रखती है जिसमे री -इनकार्नेशन को लेकर गत पचास सालों का सार है .लेखा जोखा है .किस्सा है आत्मा के एक शरीर छोड़ कर दूसरे में जाने का .चोला बदलने का .प्रसंग यहाँ मृत्यु और जन्म के क्षण का है ,पल -छिन का है .दलाई लामा भी इस शोध की पुष्टि करतें हैं ।
मथरानी साफ़ तौर पर मानतें हैं बीमार मनुष्य की आत्मा होती है मनो -रोग के माहिर इलाज़ शरीर का कथित दिमाग का करतें हैं ,मनो -रोगों को सिर्फ चंद जैव -रसायनों का असंतुलन करार देतें हैं ।
आत्मा पर विचार करने ,केंद्र में रखने पर बहुत सारी समस्याएं हल हो जातीं हैं .माइंड (आत्मा ,चित्त )की संभाल करने से मनो -कायिक रोगों से (साइको -सोमाटिक-दिजीज़िज़ से राहत मिल सकती है ).साईं -किये -ट्री कुछ ख़ास नहीं कर पाएगी .रोग आता रहेगा जाता रहेगा .मन (चित्त ,व्यक्ति .आत्मा तो बीमार ही रही आई ,रोग शमित भर हो गया ।).
आत्मा को सुकून और राहत देगा शान्ति -प्राणायाम .माइंड को चित्त को स्वास्थ्य कर (स्वस्थ बनाए रखता है )शान्ति -प्राणायाम .साथ में चाहिए ख़ुशी का एहसास (हेपी फीलिंग्स )धनात्मक सोच (पोजिटिव थिंकिंग ),रचनात्मक नज़रिया जीवन और जगत के प्रति .(ज़ारी ....अगली किस्त में शान्ति -प्राणायाम ).
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
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