ब्रेन रीजन लिंक्ड टू इंट -रोस -पेक्शन(मुंबई मिरर ,साइंस -टेक ,पृष्ठ २६ ,सितम्बर १८ ,२०१० )।
कुछ लोगों को अपने बारे में (अपने दिमाग के बारे में )औरों से बेहतर पता होता है उनका आत्मविश्वास भी अपेक्षाकृत बेहतर होता है .हालिया आई रिसर्च ने मानवीय चेतना से ताल्लुक रखने वाले जीव -विज्ञान की टोह ली है .पता चला है अंतर -निरीक्षण की क्षमता रखने वाले लोगों के दिमाग का एक हिस्सा अपेक्षाकृत आकार में बड़ा होता है .एक दिन उन लोगों की भी थोड़ी मदद की जा सकेगी जो किसी दिमागी चोट या दिमागी बीमारियों की वजहों से ठीक से अपने बारे में जान समझ नहीं पाते ,सेल्फ रिफ्लेक्शन से (आत्मा -लोचन से )वंचित बने रहतें हैं .शिजोफ्रेनिया (शीज़ोफ्रेनिक बिहेवियर )से ग्रस्त लोग .कैसा जीवन जी रहें हैं इसका ठीक से आकलन नहीं कर पाते ।
सेल्फ अवेयर -नेस (अपने बारे में जागरूक होने रहने )काएक न्यूरो -लोजिक आधार है .इस बुनियाद को जान समझ कर एक दिन न्यूरो -लोजी (स्नायुविक विज्ञान )के माहिर ऐसे लोगों की निश्चित ही मदद कर पायेंगें .संदर्भित रिसर्च इसी दिशा की और एकआशावादी कदम भर है .जर्नल साइंस में प्रकाशित इस ताज़ा रिसर्च के मुखिया यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के साइंसदान स्टेफेन फ्लेमिंग इसी उम्मीद से लबरेज़ हैं ।
आत्म -निरीक्षण एक प्रकार का आत्म परीक्षण है अपने ही विचारों से साक्षात कार है ,रु -बा -रु होना है खुद का खुद के साथ .
ब्रितानी साइंसदानों ने इसी मुश्किल विषय कोलेकर लोगों की आत्म -विश्लेसन क्षमता का जायजा लिया है लोगों के फैसला लेने की क्षमता का आकलन करके ।कौन कितना शुद्धता से फैसला लेता है :
इस एवज ३२ स्वस्थ लोगों को कंप्यूटर स्क्रीन पर कुछ पेट -रन्स(पैट्रंस ) दिखलाए गये जिनमे से एक बाकी सबसे, ब्राइ -टरथा .तेज़ीसे सभी को बतलाना था कौन से स्क्रीन का पैट्रन सबसे चमकीला है .अब क्योंकि कुछ लोग स्वभावतय अच्छे प्रेक्षक होतें हैं इसलिए कंप्यूटर एड्जस्तमेंन्त के ज़रिये पैट्रंस में अंतर करना सभी के लिए एक समान मुश्किल बनाया गया .ताकि पूरी तरह निश्चिन्त हो कोई कुछ ना कह समझ सके ।
अब सभी स्वयंसेवियों कोअपना इसबात के लिए मूल्यांकन करना था ,वह अपने उत्तर से कितने आश्वश्त थे .इस प्रयोग का केन्द्रीय विचार यह था जो लोग अच्छे अंतर -निरीक्षक होतें हैं वह अपने तैं आत्मविश्वाश से भरे रहतें हैं अपने उत्तरके सही होने के प्रति निश्चिन्त भी बने रहतें हैं लेकिन उत्तर के गलत रहने की गुंजाइश होने पर सेकिंड गैस लगाने से भी परहेज़ नहीं करतें हैं .लेकिन धृष्ट और ढीठ लोग ऊपर से अति -आत्मविश्वाश का लबादा ओढ़े रहतें हैं जो उनके उत्तर से ज़रा भी मेल नहीं खाता है ।
अध्ययन से यह खुलासा भी हुआ ,जो ब्रेन स्केन से पुष्ट भी हुआ ,लोगों की आत्म -निरीक्षण की क्षमता का उनके दिमाग के प्री -फ्रंटल कोर्टेक्स के एक स्पोट पर (आँखों के ठीक पीछे )मौजूद ग्रे -मैटर की मात्रा से एकअंतर सम्बन्ध है .इतना ही नहीं जो लोग अच्छे आत्म -निरीक्षक थे उनका ग्रे मैटर भी ज्यादा असरदार तरीके से अपना काम अंजाम देता था (स्ट्रोंगर फंक्शनिंग ग्रे मैटर के मालिक थे यह लोग ).इनके न्युरोंस में भी परस्पर अच्छा संवाद होता है .एक बेहतरीन टेलीफोन निगम की तरह होता है इनका दिमाग ,दिमाग का वह हिस्सा जहां ग्रे मैटर का ज़माव होता है .
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2 टिप्पणियां:
Virendra Ji
maine aapka blog dekha bahut hi achcha sangrah hai. agar aapko fursat mile to kabhi www.samaydarpan.com ko dekhiyega aur ho sake to apani rachnaayen bhi bhejiyega. hamen bahut achcha lagega.
dhanyavaad
Bhaai sahib sadaiv hi aapkaa svaagat hai .aap koi bhi rchnaa le sakten hain .sehat sambandhi mudde hi uthhaataa rhungaa yaa fir jigyaasaa kaa shaman karne vaale mudde .
veerubhai .
shikriyaa aapkaa ,aapko kuchh nirantar achchhaa lage yahi koshish rhegi kamibeshi batlaane me chookiye nahin .
veerubhai .
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