शनिवार, 11 सितंबर 2010

चावल की नमक टोल -रेंट किस्म जो सेलाइन सोइल में भी ज्यादा उपज देगी

नाव ,जेनेटिकली मोडिफाइड राईस देट ग्रोज़ इन सेलाइन वाटर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर ११ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने दावा किया है ,चावल की एक ऐसी आनुवंशिक तौर पर संशोधित किस्म तैयार कर लेने का जो सेलाइन सोइल (मिटटी जो उन्नत खेती उन्नत बीज ,एक्स्तेंसिव इर्रिगेशन के चलते लवणीय हो चली है )में भी भरपूर फसल ,बेहतर उपज प्रति एकड़ देगी ।
इसी प्रोद्योगिकी को अब गेंहू और जों (बार्ले )पर भी आजमाया जाएगा .अडे-लीड यूनिवर्सिटी ,कैरो ,कोपेनहेगन तथा मेलबोर्न के साइंसदानों के सम्मिलित प्रयासों से यह प्रोद्योगिकी विकसित हुई है जिसके तहत लवणका सांद्रण पौधे की जड़ों तक सीमित रखा गया है ,ताकि ,शूट्स और उससे और ऊपर का प्लांट साल्ट से असर ग्रस्त ना हो .पौधे का नया अंश, अंकुर बे- असर बना रहे साल्ट से ।
और इसी के साथ भूमंडलीय स्तर पर चावल (धान )के उत्पादन को एड लग सकती है खासकर उन इलाकों में जहां मिटटी की लवणीयता एक समस्या रही आई है .धान अकसर ज़मीं पर ही उगाया जाता है और ज़मीन(मिटटी )को सदैव ही आधुनिक कृषि संशाधनों के चलते लवणीय होते चले जाने का ख़तरा मुह बाए खड़ा रहता है ।
जहां जहां सोइल सेलिनिटी मौजूद है वहां वहां प्रति एकड़ उपज कमतर रही आई है .इससे एक प्रकार की खाद्य असुरक्षा बनी रही है ।
सेलिनिटी टोलरेंस एक बड़ा मुद्दा रहा है .इसे हासिल करने के लिए रिसर्चरों की टीम नेचावल की एक ख़ास जीन (जीवन इकाई )को संशोधित किया है ताकि जड़ों की ख़ास कोशाओं तक अधिक से अधिकलवण (साल्ट )अंतरित करने वालीप्रोटीनों की तादाद को बढाया जा सके .टेक्नीक कामयाब रही जिसने साल्ट को अधिकाधिक जड़ों तक सीमित रखा,जहां यह कमतर नुकसानी का सबब बनता है और पौधे का अधिकाधिक अंकुरित अंश (शूट्स )सुरक्षित बना रहता है . शूट को ही तबाह करता है साल्ट .

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