वीडियो गेमिंग प्री -प्रेयर्स ब्रेन फॉर बिगर टास्क्स(मुंबई मिरर ,सितम्बर २८ ,२०३० ,पृष्ठ २० )।
एक नवीन अध्ययन ने इंगित किया है आज अगर आपका बेटा /बेटी वीडियो गेम्स से चिपके रहतें हैं ,तो कल वह लेप्रा-(लपर -ओ -स्कोपी के माहिर शल्यक ) स्कोपिक सर्जन भी बन सकतें हैं ।
वीडियो -गेमिंग विज़ियो -मोटर स्किल्स (विसुओमोटर स्किल्स ) को प्रखर बनाती है .दरअसल जो युवजन इन गेम्स में मशगूल रहतें हैं उनके दिमाग की सर्किट्री का पुनर- गठन होने लगता है .नेट्वर्किंग कुशाग्र होने लगती है .
अध्ययन के नतीजे जर्नल "एल्सेविएर्स कोर्टेक्स "में प्रकाशित हुएँ हैं .योर्क यूनिवर्सिटी,कनाडा के विजन रिसर्च केंद्र के रिसर्चरों ने १३ ऐसे युवजनों का जो गत तीन बरसों से कमसे कम सप्ताह में चार घंटा वीडियो -गेम्स ज़रूर खेलते थे इसी बीस साला उम्र के इतने ही ऐसे नौज़वानों से जिनका इन खेलों से परिचय ही नहीं था तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण किया ।
हरेक समूह के नौज़वानो को फंक्शन रेजोनेंस इमेजिंग के लिए पोजीशन किया गया .अब इनसे लगातार मुश्किल होती विसुओमोटर टास्क्स को पूरा करने के लिए खा गया .(सच एज यूजिंग ए जोय स्टिक और लुकिंग वन वे व्हाइल रीचिंग एनादर वे ।).
मकसद यह पता लगाना था किस समय दिमाग का कौन सा हिस्सा कम या ज्यादा सक्रीय होता है .मकसद यह भी आकलन करना था वीडियोगेम्स से सीखी समझी गई दक्षता नै और मुश्किल टास्क्स को हल करने में कैसे काम आती है .सिर्फ टास्क्स को हल करते हुए ब्रेन एक्टिविटी ही दर्ज़ करना इस प्रयोग का आशय नहीं था ।
वीडियोगेम्स में अदक्ष लोग के दिमाग के परिटल कोर्टेक्स पर ज्यादा भरोसा कर रहे थे (दिस इज दी ब्रेन एरिया टिपिक्ली इन्वोल्व्द इन हेंड आई कोर्डिनेशन )जबकि दस्क्ष लोगों का भरोसा प्री -फ्रोंतल कोर्टेक्स पर टिका हुआ था .(अट
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2 टिप्पणियां:
बढ़िया जानकारी ।
shukriyaa boss .
veerubhai
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