दे -यर इज मच मोर टू हेल्थ देन करेला ज्यूस (मुंबई मिरर सन्डे सितम्बर १९, २०१० ,पृष्ठ २८ )/रुजुता दिवेकर ,न्यूट्रीशन कंसल्टेंट ,कंट्रीज ए लिस्ट /ऑथर ऑफ़ दी पाप्युलर बुक "डोंट लूज़ योर माइंड ,लूज़ योर वेट "।
पहली किश्त :
अगर आप शरीर को डी -टोक्सिफाई करना चाहतें हैं तो पूरी गंभीरता से आपको यह भी सोचना पड़ेगा ,ऐसी नौबत क्यों आन पड़ी .आखिर अपने ही सिस्टम को आपने खुद ही टोक्सिफाई किया होगा .ऐसे क्या कम्पल्संस ओब्सेसंस रहे जो आज यह शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करना ज़रूरी लगा/और क्या आप सोचतें हैं जो कबाड़ा आपने शरीर का २/५/७ महीनों, सालों में जाकर किया उसकी सफाई २/५/७ दिनों में किसी क्रेश कोर्स से सचमुच हो जायेगी ?
जब आपके वार्ड में कोई नेता पधारता है तब महानगर परिषद् फ़टाफ़ट साफ़ सफाई की व्यवस्था को चाक चौबंद कर लेती है उसके बाद वही ढाक के तीन पांत .वही गंदगी के टापू महानगर की कौख पर उग आतें हैं ।
क्या आप सचमुच अपनी गली मोहल्ले को साफ़ रखना चाहतें हैं ?ज़ाहिर है आपको अपना रवैया बदलना पड़ेगा .अपने सिस्टम को डी -टोक्स करना कोई गुडिया गुड्डों का खेल नहीं है .जीवन शैली बदलनी होगी आपको अपनी .खानपान के प्रति नज़रिया भी .वगरना तो करेला और ऊपर से नीम चढ़ा वाली उक्ति ही चरितार्थ हो जायेगी ।
डी -टोक्स करने की प्रक्रिया में आप अपने शरीर के साथ वैसा ही खिलवाड़ कर बैठेंगें जैसा टोक्सिफाई करते समय करते आयें हैं बल्कि उससे भी बदतर .यकीन मानिए ।पुष्टिकर तत्वों की निगाह में ऐसा ही होगा .कुछ दिन फल फूल मेवे (नट्स ,अखरोट दूध में भिगोकर खाने से कुछ होने जाना नहीं है .)ना ही कुछ सब्जियों का रस पीने से कुछ होना जाना है .और उपवास से तो और भी बेड़ा गर्क होना है .गुदा से भी तरह तरह के नुश्खों को दाखिल करवाया जाता है .दवा की कोई एक खुराख या विष अल्पांश में ऐसा नहीं बना है जो जादुई ड्रिंक कहलाये .फिर भी लोग ऐसा करतें भी हैं मानतें भी हैं .दस्त लगने का अर्थ सिस्टम की साफ़ सफाईहोना लगा लिया जाता है .सब कुछ जानते हुए हम अपने को गुनी और सयंमी मान बैठतें हैं जबकि हम अन्दर से जानतें हैं ,हम चंद दिनों में ही अपने पुराने ढर्रे पर लौट आयेंगें ।
जान के अनजान बनना नादानी नहीं है तो और क्या है ?और मान लीजिये जो कुछ आप कर रहें हैं वह सचमुच फायदे की चीज़ है तो फिर ऐसा चंद दिनों के लिए ही क्यों करतें हैं ,हमेशा के लिए फल फूल ,सब्जियों के सत और बे -हिसाब पानी पर ही क्यों नहीं रहते आप ?
उत्तर सरल है ऐसा मुमकिन ही नहीं है टिक नहीं सकता ऐसा करते रहना .डी -टोक्स वही भला जिस पर आप कायम रह सकें ,आपके कामकाजी घंटों से जो मेल खाता हो ,आपकी बरसों से चली आई खुराख से जिसका कोई ताल्लुक रहा हो .आपका एक मन भी है पसंदगी ना -पसंदगी भी है ,आप एक ख़ास भौगोलिक ज़ोन में रहतें आये हैं ,धूप ,ताप, नमी सभी कुछ के तो आदी हो चले हैं आप .आपका एक एक्सर -साइज़स्टेटस भी रहा आया होगा ? फिर सबको एक ही लाठी से कैसे हांका जा सकता है ?डी -टोक्स वह किस काम का जिस पर आप कायम ही ना रह सकें ?
जीवन किसी पांच तारा होटल के अभिनव ब्युफे की मानिंद नहीं है ,आप सिर्फ सलाद और देज़र्ट्स पर ज़िंदा रहें ?ये शातिर लोग जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं हम डी -टोक्स के चक्कर में सिर्फ सलाद और देज़र्ट्स खा रहें हैं ,मैनकोर्स से छिटक रहें हैं .ऊपर से तुर्रा यह इसके बाद हम पेस्ट्री भी उड़ा -एंगें कहते हुए अरे साहिब यह तो हमने अर्न की है ,कमाई है अपने आप को महरूम रखके ।
काम की बात यह है डी -टोक्स अपने को रखना एक दिन का खेल नहीं है .पहेल सिस्टम को होने वाली नुकसानी तो कम कीजिये ।
चार बुनियादी बातें आपको याद रखनी हैं :खाद्य (फ़ूड ),एक्टिविटी (आपकी दिन भर में सक्रियता ),नींद चौबीस घंटों में कितनी है ?आपका मन कैसा रहता है ?
इन चारों को दुरुस्त कीजिये फिर डी -टोक्स करने का सोचिये ।
(शेष अगली किश्त में .....ज़ारी )
मंगलवार, 21 सितंबर 2010
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