रविवार, 26 सितंबर 2010

यकीं मानिए जब आप सीढ़ी के ऊपरले पायदान पर खड़े होतें हैं आपकी जैव घडी तेज़ हो जाती है ,बढाने लगतें हैं आप

स्टेंडिंग ऑन ए स्टे-यर केस मेक्स यु एज फास्टर (मुंबई मिरर ,साइंस -टेक सितम्बर २५ ,२०१० ,पृष्ठ २६ )।
भले ही आप यकीन करें ना करें ,जब आप छत पर खड़े होतें हैं तब भू -तल(पहली मंजिल )के बरक्स आपकी उम्र में इजाफा होने लगता है आप अपेक्षाकृत जल्दी बुढ़ाने लगतें हैं .आपकी सर्कादियंन रिदम तेज़ हो जाती है ।
रिसर्चरों ने पता लगाया है आइन्स्टाइन का सिद्धांत भू -सम्बद्ध ,अर्थ बाउंड दूरियों और समय के सांचों (टाइम फ्रेम्स ) को असर ग्रस्त करता है इसका मतलब यह हुआ ,वह घडी जो आपके बरक्स(आपकी विराम स्थिति में आपके पास जो घडी मौजूद है ) तेज़ गति से आगे बढ़ रही है धीमे धीमे टिक टिक करेगी .यानी रनिंग क्लोक लूज़िज़ टाइम फॉर एन स्टेशनरी ऑब्ज़र्वर .विशेष सापेक्षवाद के तहत यही" टाइम- डाय -लेषण" कहाता है .
आइन्स्टाइन का एक और सापेक्षवाद है जिसे गुरुत्व सम्बन्धी सापेक्षवाद कहा जाता है .इसकी समीकरण बतलातीं हैं गुरुत्व भी समय के प्रवाह को असर ग्रस्त करता है .ग्रेविटी स्लोज़ डाउन और डाय -लेट्स टाइम .कल्पना यह भी आइन्स्टाइन ने की थी यदि भविष्य में कोई अन्तरिक्ष यात्री किसी अति -गुरुत्वीय पिंड "ब्लेक होल्स "के नज़दीक भी पहुँच गया ,उसकी घडी की सुइयां ठहर जायेगीं ,हेंड्स ऑफ़ हिज़ क्लोक वुड बिकम स्टेशनरी .प्रकाश भी अपने सरल रेखात्मक मार्ग से विचलित हो जाएगा जबप्रकाश ऐसेकिसी भीम काय गुरुत्वीय पिंड के पार्श्व से गुजरेगा .आकाश काल मुड- तुड जाएगा ,टाइम एंड स्पेस वुड बी डिस -टोर्तिद,प्रजेंस ऑफ़ मैटर गिव्स स्पेस एंड टाइम ए कर्वेचर ।मैटर मीन्स ग्रेविटी .
यानी इसका सरल भाषा में अर्थ यह लगाया जाए ,अगर आप शक्ति शाली गुरुत्व बल अनुभव कर रहें हैं ,तब आपके लिए समय का प्रवाह मंदा पड़ जाएगा .टाइम विल गो स्लोवर ।
यह खबर नेशनल जोग्रेफिक न्यूज़ के सौजन्य से नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्टें -दर्ड्स एंड टेक्नोलोजी के जेम्स चिन -वेन चौ ने दी है .
आपने समय के मापन के लिए दो अति -शुद्ध (अल्ट्रा- प्री -साइस एत्मोस्फीयारिक क्लोक्स )का स्तेमाल कियाहै
।बस एक घडी को दूसरी से एक फीट ऊपर ले जाकर दोनों से एक साथ समय का मापन किया गया .ज़ाहिर है दो अलग अलग प्रेक्षकों ने ऐसा किया होगा .पता चला जो घडी ऊंचाई पर ले जाई गई थी सिर्फ एक फीट की वह तेज़ी से टिक करने लगी थी .क्योंकि उसके लिए गुरुत्व का मान थोड़ा कम हो गया था .पृथ्वी के केंद्र से दूर जाने पर गुरुत्व बल की शक्ति क्षीण होती जाती है .दूरी के वर्ग के साथ विलोम अनुपात में कम होने लगती है .यानी दूरी पहले से दोगुनी होने पर ताकत पहले से घटकर एक चौथाई रह जाती है .दूरी तीन गुना होने पर,नौवां हिस्सा ही रह जाती है गुरुत्व बल की शक्ति ।
यदि इस घडी को आइन्दा आने वाले सौ सालों तक एक फीट ऊंचाई पर ही बनाए रखा जाए ,तब इसमें १०० नेनो -सेकिंड्स का फर्क पैदा हो जाएगा .(इट विल रिकोर्ड लेस टाइम ,लेस बाई १०० नेनो सेकिंड्स )भू -तल पर रखी गई घडी के बरक्स ।
इसका मतलब हुआ हमारे दैनिक जीवन में समय का प्रवाह एक समान नहीं रहता है .पिछली पीढ़ी
की घड़ियाँ इस सूक्ष्मतर समय -अंतराल की माप नहीं रख पातीं थीं .
यही कहना है साइंसदान चौ का जिन्होंने इस अधययन के नतीजे ब्रितानी विज्ञान पत्रिका साइंस में प्रकाशित किये हैं .
किसी मंजिल के ऊपरले माले पर रहते हुए आप तेज़ी से बुढा -एंगें बरक्स नीचे वाले माले के वासिंदों के .बा -शर्ते बाकी हालत यकसां हों ।
जब आप ज़मीं पर भी खड़ें हैं ,आपके शरीर के अलग अलगआंगिक - तंत्र ज़मीन से अलग अलग ऊंचाई पर हैं ,इसीलिए इनके बुढा -ने का दर्जा और दर भी अलग अलग रहेगी ।
हमारी जैव घडी भी तो इन्हीं नियमों कायदों का अनुसरण करती चलती है .भौतिक घड़ियों के नियम हमारी जैव रासायनिक प्रक्रियाओं पर बायो -रिदम पर भी लागू होतें हैं।
दिमाग की प्रक्रियाएं पैरों के तलुवों में चलने वाली प्रक्रियाओं से अलग रफ्तार पर चलेंगी .दिमागी प्रक्रियाएं तेज़ चलेगीं ।दिमाग ज़मीन से ऊंचाई पर जो है जबकि पैर ज़मीं पर टिके हैं .
गगन चुम्बी इमारत की सबसे ऊपरली इमारत पर रहने वालों के लिए भी भले ही कितना कमतर क्यों ना हो यह अंतर दर्ज़ किया जा सकता है .७९ साला हमारी कुल जीवन अवधि में उम्र भर में सबसे ऊपरली मंजिल में रहने वालों के लिए ९० बिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड का अंतर तो आही जाएगा .बेशक यह ज़वान बने रहने का नुश्खा ना सही पहली मंजिल वालों के लिए ,भू -भौतिकी और इतर विज्ञानों में इस अंतर के महत्व को नजर -अंदाज़ नहीं किया जा सकता .

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