तेल अवीव विश्विद्यालय के मिचा फ्रीडमान ने दवारोधी सुपर जीवाणु की काट के लिए दवा तैयार करने में इसी जीवाणु का सहारा लिया है .इस एवज जीवाणु प्रति -रोध का ही सहारा लिया गया है .इस प्राविधि (मिखेनिज्म )को विकसित करने में मिशिगन विश्वविद्यालय ,अन्न अर्बोर (एनार्बर ) के साइंसदानों का भी सहारा लिया गया है .बकौल फ्रीडमान जीवाणु की कुछ प्रजातियों में एंजाइम्स भी शरीक हैं .यही जीवाणु को एंटी -बाय -टिक्स दवाओं को अक्रिय कर (इन -एक्टि -वेट कर )बे -असर करने का माद्दा देतें हैं .जब ये किण्वक (एंजाइम्स )एंटी -बाय -टिक्स दवाओं के संपर्क में आतें हैं ,ये दवा की रासायनिक बुनावट (संरचना )में ही बदलाव ला देतें हैं .ऐसे में एंटी -बाय टिक्स दवाएं बे -असर हो अपने लक्ष्य से ही भटक जातीं हैं .इस ताकतवर रन -नीति को ही जीवाणु के खिलाफ आजमाया जा रहा है ।
इसे हासिल करने के लिए पहले इस एंजाइम को ही जीवाणु से अलग थलग किया गया है जो दवा की धार को कुंद बना देता आया है .इसके बाद इसे ही दवा के साथ संयुक्त कर जीवाणु के खिलाफ एक असरदार हथियार के रूप में
उतारा गया है ।
इस प्रकार संशोधित एंटी -बाय -टिक्स दवाएं दवा रोधी (ड्रग रेज़िस्तेंत बेक्टीरिया )जीवाणु के खिलाफ असरकारी साबित हुईं हैं .यानी दवा में से बेक्टीरिया रेजिस्टेंस (जीवाणु प्रति -रोध निकाल दिया गया है ,जबकि दवा की साख (इंटी -ग्रीटि )को कोई आंच नहीं आई है ।
अध्ययन के नतीजे जर्नल "केम -बायो -केम"में प्रकाशित हुएँ हैं .
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें