दो शब्दों का ज़मा जोड़ है मेन -होल (मेन और होल )जिसका चलन १७८५ -१७९५ के बीच आम हुआ .यह वास्तव में मानव निर्मित एक राउंड कवर ही है (गोलाकार मोटा मजबूत लौह का ढक्कन है ),जिसे हठाकर आदमी सीवर ,ड्रेन या फिर स्टीम बोइलर में उतर सकता है ,सफाई के मकसद से .हालाकि सीवर बंद हो जाने पर जो गैस बनती है उससे कई मर्तबा जान भी चली जाती है .लेकिन हिन्दुस्तान में यह आम होता है .राजधानी की सड़कें भी इससे अनजान नहीं हैं .शहर की गलियों में ही यह नंगा उघडा मिल जाता है जिसमे कोई सेवा निवृत्त सवेरे की टहल कदमी के दौरान अपने अनजानेनीम अँधेरे भी गिर सकता है ।यहाँ व्यवस्था के कान नहीं है .आँख भी नहीं हैं .गांधी जी के तीन बन्दर हैं .
यह मिश्र है दो शब्दों का -मेन और होल .जेंडर न्युत्रलिती के इस दौर में कई लोगों को इस पर एतराज भी हो सकता है .मेनहोल ही क्यों ?वोमेनहोल क्यों नहीं ?
सोमवार, 13 सितंबर 2010
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