ह्रदय रोग सम्बन्धी कुछ विशिष्ठ शब्दावली की चर्चा करना प्रासंगिक रहेगा .दिल का दौरा आज भी हमारी जान का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है .शुरुआत होती है सीने के हलके- फुलके दर्द से जिसे अकसर गैस बनरही है कहकर टाल दिया जाता है या फिर तेज़ाब बनरहा है ,एसिडिटी(अम्ल शूल ) हो रही है समझ लिया जाता है .
बस यही शुरूआती लक्षण अगर पकड़ में आजाये तो ज्यादा बड़ी आफत हार्ट अटेक से आगे चलकर बचा जा सकता है .हृद वाहिकीय रोगों(कार्डियो -वैस्क्युलर डिजीज ) के प्रति भी खबरदार रहा जा सकता है .लक्षणों की तेज़ी और उग्रता को देखते हुए रोग को रास्ते में ही थामा जा सकता है .कई चरण हैं ,प्रावास्थायें हैं परिहृदय धमनी - रोगों की .
ह्रदय शूल या एन -जाईना पेक्टोरिस को लेतें हैं ।
एन -जाईना सीने में लौट लौट कर बारहा होने वाली तकलीफ है दर्द है .ऐसा तब होता है जब दिल के किसी हिस्से को पूरा रक्त नहीं मिलता .रक्तापूर्ति में कमी रह जाती है .यह परिहृदयधमनी -रोग का आम लक्षण है और सीने की हड्डी के नीचे से उठने वाले इस दर्द की वजह बनती है हृद धमनी का अन्दर से खुरदरी और संकरी पड़-जाना ,आंशिक तौर पर अवरुद्ध हो जाना (आथिरो -स्केलेरोसिस )।
एन-जाईना को रेडियेटिंग पैन भी कह दिया जाता है क्योंकि यह अमूमन सीने की हड्डी स्टर्नम से उठकर कंधो से होता हुआ बाजू तक आता है ,उँगलियों तक भी पहुंचता है .जबड़े ,गर्दन ,कमर ,ऊपरी एब्डोमन में भी आजाता है यह हृदयशूल .अमूमन एग्ज़र्शन (ज़रुरत से ज्यादा लगातार काम करना )इसकी वजह बनती है लेकिन ज़रूरी दवा फ़ौरन ज़बान के नीचे रखने से ,रुक कर सुस्तानेपर आराम भी आजाता है .दर्द चला जाता है .(आइसोर्दिल ,आइसोसोर्बाइद- मोनो तथा डाई -नाइट्रेट ,फाइव नाईट -रेट्स ,सोर्बित्रेट आदि गोलियां जीवन रक्षक सिद्ध होती हैं .बतलाकर आता है एन -जाईना इसलिए इसकी अनदेखी करना आगे के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है .साइलेंट किलर को न्योत सकता है .
सोमवार, 27 सितंबर 2010
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