बहुत ही घिसा पिटा विषय है लिखने के लिए फिर भी हमें लगा कुछ नया समझा समझा -जाया सकता है .हमारी एक माशूका हैं (भगवान् करे सब की हों ,विधुर हों चाहें बेच्युलर ),बेहद शौक है उन्हें मटराखाने का (पश्चिमी उतार प्रदेश मशहूर है" मटरा" के लिए .बतलादें मटरा उबले हुए विशेष चने की चाट है ,जो मंदी आंच पर राँग की तरह घुल जाती है .आपको बतलादें किस्सा चंडीगढ़ का है जहां गुरु समान हमारे एक मुह्बोले मामा ,एक मित्र भी हैं .हम लोग चंडीगढ़ के एक पार्क में मटर -गश्ती कर रहे थे ,पार्क के बाहर एक मटरा वाला था .बस मोतर्मा मचल गईं ,मटरा उन्हें खिलाना पड़ा .हमारे मामा ने हमें बतलाया ये गली कूचे के वेंडर्स इनके ना बर्तन भाँड़ें साफ होतें हैं ना नाखून .हमने कहा सर यह तो उबला हुआ है सेफ है .लेकिन हम जानतें हैं और अच्छी तरह से मानतें हैं हमारा तर्क गिर चुका था .सर की बात में वजन था .साफ़ पानी ही कहाँ मयस्सर है भारत के गरीब गुरबों को ,भाँड़ें ऐसे में कैसे साफ़ सफाई वाले होंगें ।
बेशक मलेरिया कफ कोल्ड और विषाणु जन्य संक्रमण ,इन्सेक्ट बाईट (वेक्टर जनित बेहिसाब ,चिकिनगुनिया ,डें -ग्यु
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
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