(गत पोस्ट से आगे ....)
जुपिटर अस्पताल थाणे के इंटर -वेंशनल कार्डियो- लोजिस्ट डॉ राजीव कार्निक बल देते हुए दृढ़ता पूर्वक कहतें हैं हृद रोगों के बढ़ते हुए खतरों के प्रति खबरदाररहना भारत के सन्दर्भ में विशेष मानी रखता है जो हृद रोगों के मामले में सबसे आगे बना हुआ है ,विश्व -स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के अनुसार इस साल के आखिर तक दुनिया भर के कुल हृद रोगियों का ६० फीसद मरीज़ भारत में डेरा डाले होगा .भारत वासी होगा .
जितने ज्यादा रिस्क फेक्टर्स मौजूद रहें गें हृद रोगों का,परि -ह्रदय धमनी रोगों का ख़तरा उसी अनुपात में आपके लिए बढ़ता चला जाएगा .अलावा इसके जितना ज्यादा वजन हरेक जोखिम का होगा उसी अनुपात में ख़तरा भी और भी ज्यादा बढेगा ।
दरअसल हमारा सामाजिक आर्थिक ढांचा हमसे बराबर उन खतरों की अनदेखी कराता रहता है जिनकी शिनाख्त आसानी से हो जाती है और जिन्हें मुल्तवी रखा जा सकता है .स्वास्थ्य के प्रति चेतना का अभाव घर बाहर ,काम- काजी स्थल पर फैला पसरा तनाव (स्ट्रेस लेविल जो कम होके नहीं देता ),नकारात्मक सोच और संवेग (निगेटिव इमोशंस )तथा बिन मांगी विरोधी और भ्रम पैदा करने वाली सलाह स्थिति को बद से बदतरीन बनाती रहती है .
५२ देशों में संपन्न एक हालिया "इंटर -हार्ट स्टडी"में ऐसे नौ बड़े जोखिमों को रेखांकित कियागया है जो दुनिया भर में हार्ट अटेक्स के ९० फीसद मामलों कीवजह बने हुएँ हैं .डायबिटीज़ ,लिपिड एब्नोर्मलेतीज़(हाई बेड ब्लड कोलेस्ट्रोल "एल डी एल" तथा "हाई -ट्राई -ग्लीस -राइड्स ") ,हाई -पर टेंशन ,तम्बाकू का चलन ,असामान्य मोटापे की जद में बने रहना ,कम फल और तरकारियों का सेवन तथा अनेक मनो वैज्ञानिक वज़ूहातें (किसी भी धार्मिक या इतर वजह से एल्कोहल से परहेजी ),बैठे बैठे काम करने की नियति ,व्यायाम कादैनिकी से नदारद रहना ,बड़े जोखिम रहे आयें हैं ।
जब पहल हो जाए तब जल्दी "इट इज नेवर टू अर्ली एंड नेवर टू लेट टू स्टार्ट टेकिंग के -यार ऑफ़ योर हार्ट "यही कहना मानना है प्रोफ़ेसर शहर- यार,विश्व -हृद संघ के मुखिया का ।
एक समुचित जीवन शैली को अपनाकर अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है .बस कुछ जोखिमों को पहचान कर गांठ बाँध लें इनकी अन -देखी नहीं करनी है .(ज़ारी )
रविवार, 26 सितंबर 2010
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