शुक्रवार, 4 मार्च 2011

जीवन की नश्वरता पर सवालिया निशाँ (ज़ारी...).

गत पोस्ट से आगे ....
चलिए २०२३ का इक नज़ारा देखतें हैं ,क्या कहतें हैं कंप्यूटर विद्या के माहिर रेमोंड कुर्ज्विएल कृत्रिम बुद्धि के विकास की बाबत तथा जैव -विद औब्रेयदे ग्रे हमारी जेनेटिक कोड के पुनर -लेखन /नवलेखन के बारे में ।
२०११ में इक घंटा में जितने अन्वेषण हो रहें हैं वह गत शती में १०० साल में संपन्न होते थे .डीप ब्ल्यू जैसे सुपर -कम्प्यूटर्स ने विकास की रफ़्तार को नए पंख लगा दिए हैं .सोचने वाली मशीनों की बात तेज़ी से आगे बढ़ी है .इंटर -नेशनल ग्रांड -मास्टर्स को हराने वाली मशीनें हाज़िर हैं ।
आदमी को बड़ा गुमान रहा है कोई चेतना की नक़ल पैदा करने वाला कंप्यूटर न है न होगा .लेकिन बकौल कुर्ज्विएल२०२३ में यह स्वपन टूट सकता है .सुपर -सुपर कम्प्यूटर्स आदमी की मेधा और सृजनात्मकता का अतिक्रमण करने लगेंगें .कला (ललित कला से परफोर्मिंग आर्ट्स तक )से लेकर सामाजिक विज्ञानों तक हर क्षेत्र में कंप्यूटर आदमी को मात देने लगेगा .खुद सुपर कंप्यूटर अपने विकास को नै परवाज़ देंगें ।
बेशक फायदा हमें भी होगा हम अपनी तमाम मेधा ,याददाश्त को ,मन -बुद्धि -संस्कार -चेतना(चेतन -ऊर्जा ,आत्मा ) को इक अनश्वर हार्ड डिस्क में अंतरित कर सकेंगे .मौत को ठेंगा दिखा सकेंगे ।
सवाल इक और भी है ?क्या हमारे अन्दर मानवीयता भी बचेगी? एहंकार के दंभ में हम सृजन कर सकेंगे ?.नष्ट तो कुछ होगा नहीं .फिर सृष्टि चलेगी कैसे ?कौन किससे संवाद करेगा ?जिसकी शुरुआत होती है उसका समापन होता है .प्रकृति इतनी गूंगी नहीं है .जितना यह भविष्य -वेत्ता मान बैठें हैं ?सृजन और प्रलय का चक्र प्रकृति बाधित नहीं होने देगी .असंख्य लोगों ने यह कोशिश की लेकिन कोई उस तक पहुँच नहीं सका .ऐसी है 'सिंग्यु -लरेटी'की माया .
चरम संतोष प्रदान करने वाले स्वप्न देखना बुरा नहीं है .विश्वामित्र को भी दंभ हो गया था सृष्टि करता ब्रह्मा को पराश्त करने का .सृष्टि की रचना का प्रतीक स्वरूप इक नारियल उन्होंने बनाया भी था लेकिन पराश्त वह स्वयम हुए थे .केवल नाक कान आँख होना आदमी होना नहीं है सृष्टि की नक़ल वह नहीं कर सके थे ।
रावण को भी दंभ हो गया था ,उसने काल को वश में कर लिया था .कृपा -चार्य से लेकर परशुराम तक कितने ही काल पुरुष हुए हैं जिन्होनें स्वयं को चिरंजीवी मान समझ लिया था .अवतार पुरुष राम ने रावण का दंभ समाप्त किया था .सत्य यह भी तो है ।
सिंग्यु -लरेटी जितने सवाल खड़े करती है उतने ज़वाब उसके पास नहीं है .क्या पृथ्वी जो अभी भी ६ अरब से ज्यादा लोगों का पोषण कर रही है इन 'रोबो -गोडस 'का वजन झेल जायेगी .या विद्रोह कर देगी ?फट जायेगी ?
एग्जो -प्लेनेट्स को आबाद करेंगे ये 'रोबो -गोडस '?
जीवन का सौन्दर्य उसकी अल्प -कालिकता है .मृत्यु ही जीवन का श्रृंगार करती है .नव -काया में रूपांतरण करती है .केवल नश्वरता /परिवर्तन ही शाश्वत है बाकी सब डिल्यु -जन है .भ्रांत धारणा है .ऐसा हमारा मानना है .आप अपनी कहें .हम सिंग्यु-लरेटी के माहिरों से सहमत नहीं हैं .आपकी आप जाने .
सन्दर्भ -सामिग्री :व्हेन डेथ डाईज.एकोर्डिंग टू साइंटिस्ट्स ,ह्यूमेन बींग्स आर डूम्ड टू बिकम इम -मोर्टल बाई २०४ ५ /जुग सुरैया (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,मार्च २ ,२०११ ).

कोई टिप्पणी नहीं: