मधुमेह कारण तथा क्रियाविधि ?
दक्षिण पूर्वी योरोप के देश "ग्रीस "के माहिरों ने जहां एलोपैथी चिकित्सा का प्रादुर्भाव हुआ मधुमेह को नाम दिया "डायबिटीज़ मे -लाइट्स "क्योंकि मधुमेह रोगियों के मूत्र मे जांच करने पर मिठास दर्ज़ हुई ।
पेंक्रियाज़ (अग्नाशय )की आइस -लेट्स कोशिकाओं का ठीक से काम न कर पाना इस रोग की वजह बनता है .ऐसे मेंअग्नाशय पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज़ के अपचयन के लिए इंसुलिन हारमोन नहीं बना पाता.ग्लूकोज़ मेटाबोलिज्म के दोष पूर्ण हो जाने पर ग्लूकोज़ रक्त में ही बना रहता है शरीर की दस अरब कोशिकाओं तक पहुँच ही नहीं पाता है .इसीलिए रक्त में ब्लड ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ जाता है (सामान्य स्तर भोजन से पूर्व ७०-१०० मिलिग्रेम प्रति -डेसीलीटर स्वस्थ व्यक्ति के लिए होता है )।
रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर १८० मिलिग्रेम प्रति डेसी -लीटर या इससे अधिक हो जाने पर गुर्दे ग्लूकोज़ को शरीर से बाहर निकालना शुरू कर देतें हैं (यही रीनल थ्रेशोल्ड है )फलस्वरूप ग्लूकोज़ हमारे पेशाब के साथ शरीर से बाहर जाने लगता है .तत्काल कोई लक्षण भी सामने नहीं आते लेकिन अन्दर ही अन्दर यह बढा हुआ स्तर शरीर के अंदरूनी अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है .और दीर्घावधि में शरीर के हरेक अंग को असर ग्रस्त करता है शिनाख्त न हो पाने पर ।
इसीलिए इसे धीमी मौत भी कह दिया जाता है ।
अलावा इंसुलिन के अपर्याप्त स्राव के इसकी क्षमता ,शक्ति -हीनता भी रोग का कारण बनती है यानी इंसुलिन बनतो रहा है ,इंसुलिन है ,लेकिनउतना असरकारी नहीं है .
५१ अमीनो अम्लों का योग है यह प्रोटीन का कण (इंसुलिन ).इसका स्राव अग्नाशय से ही होता है .शरीर की हरेक कोशिका तक ईंधन (ग्लूकोज़ )पहुंचाने वाला यह एक विधाई (एहम )हारमोन है .
आँतमें भोजन घुलने के बाद रक्त में जैसे ही ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ता है वैसे ही वैसे अग्नाशय इंसुलिन के स्राव में तेज़ी लाने लगता है .पेंक्रियाज़ रिलीज़िज़ मोर एंड मोर इंसुलिन .यही अग्नाशय रक्त में ग्लूकोज़ की उपस्तिथि के अनुरूप इंसुलिन के स्राव को घटाता बढाता है .इंसुलिन रेग्युलेटर है .विनियमन करताहै इंसुलिन का ।
इंसुलिन के स्राव में कमी क्यों हो जाती है ,इसका स्राव क्यों निलंबित हो जाता है यह अभी अनुमेय ही है .लेकिन कुछ तथ्यों पर गौर किया जासकता है :
(१)डायबिटीज़ रन्स इन फेमिलीज़ यानी रोग के आनुवंशिक कारण भी रहतें हैं यदि एक अथवा दोनों ही पेरेंट्स (माता -पिता)भी मधुमेह से ग्रस्त रहें हों तो संतानों में इसकी पूर्वापरता (संभावना ,होने की गुंजाइश )भी बढ़ जाती है .तकरीबन ५०%मामलों में ऐसा हो सकता है ।
(२)डायबिटीज़ ए लाइफ स्टाइल डिजीज ?
इसे अब आराम तलबी ,लग्ज्युरियेंत जीवन शैली ,केलोरी डेंस फ़ूड ,सिदेंत्री लाइफ स्टाइल (दैनिकी से कसरत ,किसी भी प्रकार की मशक्कत का अभाव ),मोटापा और तनाव ,नींद का अभाव ,काम के अनियत घंटे ,शिफ्टों में काम का लगातार बदलना का सबब समझा जाता है ।
बेशक दूसरे छोर पर कुपोषण ,बे -रोजगारी ,अग्नाशय के इंसुलिन बनाने को असर ग्रस्त करते हैं .१५-३० के कुपोषितआयु वर्ग में रोग की वजह यही कुपोषण औरलेदेकर खुद से ज़िंदा रहने की शर्त पूरी करना करवाना बनता जा रहा है .
तनाव से पैदा स्ट्रेस हारमोन कोर्तिसोल ,एड्रीनेलिन रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर बढा देतें हैं .इसीलिए तनाव जनित मधुमेह भी सामने आरहा है ।
अलावा इसके ऐसा रोग संक्रमण (जिसकी वजह ही हमें मालूम नहीं है ),उद्योगिक प्रदूषण ,एक्सेस ऑफ़ एंटी -बॉडीज भी मधुमेह की वजह बन रहें हैं ।
किसी भी वजह से अग्नाशय के आइस लेट्स कोशिकाओं के नष्ट होजाने तथा पेट के निचले हिस्से पर चोट लग जाने पर भी मधुमेह हो जाता है .
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
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