भाव -कणिका :टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
जैसे मोहन का है राज ,न काम न काज ,
कैसा राजा कैसी प्रजा ,चारों तरफ मज़ा है मज़ा ,
मज़ा ही मज़ा ,
देखो न भालो कुछ तो होश संभालो ,
बात पुरानी है कुछ कहती कहानी है ,
अंधेर नगरी ,चौपट राजा ,
टके सेर भाजी ,टके सेर खाजा .
गुरुवार, 24 मार्च 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें