रेडियो -एक्टिव -सब्स्टेंसिज़ एंड देयर इम्पेक्ट ।
दुनिया भर के मुल्कों ने या तो जापान से आने वाली खाद्य सामिग्री पर रोक लगादी है या फिर उनके परीक्षणों को और कठोर कर दिया है .जबसे जापान में पानी दूध और कई तरकारियों में इनकी मौजूदगी सामान्य से ज्यादा दर्ज़ की गई उसीके बाद से दुनिया भर के देश भी चौकन्ने हो गए हैं .अपना निगरानी तंत्र इन्होनें चाक चौबस्त कर लिया है .
रेडियो विकिरण की बड़ी मात्रा हमारे शरीर पर पड़ने पर मिचली (वोमिटिंग ),चक्कर ,जी -मिचलाना ,बालों का झड़ना ,अतिसार (उलटी -दस्त ),रक्त -स्राव (अंदरूनी ),तथा केन्द्रीय स्नायुविक संस्थान की इन -टेस्टी -नल -लाइनिंग (अस्तर )को नुकसानी उठानी पड़ सकती है .नष्ट भी हो सकता है यह अंतड़ियों का अस्तर ।
डी एन ए डेमेज के अलावा रेडियो -विकिरण कैंसर के खतरे के वजन को भी बढा सकता है ,खासकर छोटे बच्चों और गर्भस्थ भ्रूण में ।
फिलवक्त तीन रेडियो -धर्मी पदार्थों को लेकर माहिरों ने चिंता जतलाई है क्योंकि इनकी मौजूदगी जापानी खाद्य पदार्थों ,दूध और पानी में दर्ज़ की गई है ।
ये हैं :
(१)रेडियो -आयोडीन -१३१ ,
(२)सीजियम -१३४ और -
(३)सीजियम -१३७ ।
पत्तेदार जापानी सब्जियों में २२,००० बेक्रील मात्रा तक इस रेडियो -आयोडीन -१३१ की दर्ज़ हुई है .,हरेक किलोग्रेम भार में ।
यह योरोपीय यूनियन द्वारा निर्धारित (निरापद समझी जाने वाली विकिरण डोज़ )से ११ गुना ज्यादा है ।
बेक्रील रेडियो -धर्मिता को मापने वाली अनेक इकाइयों में से एक है .
एक साल में जितना विकिरण एक साल में औसतन हमारे शरीर पर पड़ता है उसका आधा ऐसी विकिरण सनी सब्जी एक किलोग्राम खाने से चला आयेगा ।
इतनी ही सब्जी लगातार ४५ दिनों तक खाते रहने से हमारे शरीर में ५० मिलिसीवार्ट्स विकिरण जमा हो जाएगा ।
यह एक एटमी भट्टी पर काम करने वाले मुलाजिम के लिए विकिरण की वार्षिक लिमिट है ।
मानव शरीर के ऊतकों द्वारा ज़ज्ब विकिरण की मात्रा को मिलिसीवार्ट्स कहतें हैं ।
साल भर में १०० मिलिसीवार्ट्स विकिरण शरीर पर पड़ने से कैंसर का ख़तरा पैदा हो जाता है .इतना ही विकिरण तीन बार पूरे शरीर का सी टी स्केन कराने से भी शरीर पर पड़ जाता है . इसलिए बिला वजह रईसी दिखाने के लिए इसका चलन ठीक नहीं है ।
सूघने ,इन्हेल करने से ,सटकने से आयोडीन -१३१ हमारी थायरोइड ग्रन्थि में जमा होजाता है .इसी के साथ खासकर बालकों ,गर्भस्थ भ्रूण में थायरोइड कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है । अलबत्ता पोटेशियम आयोडाइड की गोलियां खाने से ,तरल के रूप में इसे लेने से रेडियो आयोडीन का असर जाता रहता है .लेकिन बिला वजह किसी भीती (रेडियेशन फोबिया )के तहत इनका लेना ठीक नहीं है .नुकसान ही होगा ।
सेविंग ग्रेस यह है आयोडीन -१३१ का असर ८ दिन में आधा तथा ८० दिन में पूरी तरह समाप्त हो जाता है (इसका अर्द्ध जीवन काल ८ दिन है ,इस अवधि में यानी हरेक ८ रोज़ में इसकी रेडियो -सक्रियता आधी रह जाती है .पूर्व की बनिस्पत .
जापानी सब्जियों में इसके अलावा सीजियम १३४ और सीजियम -१३७ भी पाया गया है १४,००० बेक्रील प्रति किलोग्रेम तक ।
एक महीना तक एक किलोग्रेम ऐसी ही तरकारी खाते रहने से शरीर में उतना ही विकिरण जमा हो जाएगा जितना फुल बॉडी सी टी स्केन से (२० मिलिसीवार्ट्स के तुल्य)हो जाता है .
शुक्रवार, 25 मार्च 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें