हाव होप वर्क्स विद मोड -रन मेडिसन ?
एक किताब है जिसका नाम है "दी सीक्रेट "."ला ऑफ़ अट्रेक्शन" को प्रकाश में लाती है यह किताब जिसके मुताबिक़ आपकी सोच सृष्टि पर असर डालती है ,सृष्टि वैसे ही अनुक्रिया करने लगती है जैसा आप सोचतें हैं ,सकारात्मक सोच होने पर यूनिवर्स का रेस्पोंस पोजिटिव तथा निगेटिव होने पर नकारात्मक हो जाता है ।
डॉ .चार्ल्स रेसों कहतें हैं उनकी ८२ वर्षीय माँ यद्यपि चलने फिरने में दिक्कत महसूस करतीं हैं लेकिन हर हफ्ते चर्च ज़रूर पहुँच जाती उनकी प्रबल सोच उनकी दैहिक सीमाओं का अत्रिक्रमण करती है .मन के हारे हार है मन के जीते जीत .कुछ तो बात है इस फलसफे में .(सच यह भीहै लड़ाई होसले से लड़ी जाती है अस्त्र -शश्त्रों से नहीं )।
डॉ .चार्ल्स कहतें हैं यद्यपि मेरे सारे वैज्ञानिक प्रयास इसकी सोलह आने तस्दीक नहीं करते लेकिन इतना मानने परविवश है , प्रेक्षण के आधार पर विवश हैं वैसे ही नहीं ,चिकित्सा के अच्छे नतीजे आतें हैं सकारात्मक सोच के साथ .
बेशक सृष्टि हमारे प्रति न तो ज़वाब देह है न हमारी आस निराश की गुलाम न ही हमारे स्वप्नों आकांक्षाओं को पूरा करने का सृष्टि पर कोई दवाब है ,लेकिन एक सद्य प्रकाशित अध्ययन "ला ऑफ़ अट्रेक्शन "की पुष्टि कमोबेश करता प्रतीत होता है जिसमे ड्यूक विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने हज़ारों ऐसे मरीजों से अपनी आइन्दा भविष्य में होने रहने वाली सेहत की प्रागुक्ति(भविष्य वाणी ) करने के लिए कहा जो हृद रोग निदान सम्बन्धी कार्डियो -वैस्क्युअलर परीक्षणों से गुज़र रहेथे .इनके आशा वादी /निराशावादी भविष्य कथन दर्ज़ किये गए फिर इनके स्वास्थ्य पर १५ बरसों तक बारीकी से नजर राखी गई .उन सब मुद्दों को भी आखिरी आकलन में रिसर्चरों ने शामिल किया जो इनके हृद -वाहिकीय रोगों से ताल्लुक रखते थे ।
आशावादी मरीजों की मौत की संभावना निराशावादी लोगों की तुलना में सिर्फ आधी ही रह गई थी ।
बेशक आपका आशावादी/निराशावादी होना आपकी मौजूदा कंडीशन कितनी खराब या अच्छी है इस पर भी आसानी से निर्भर करता ही है और इसीलिए एकबारगी यह अंतर -सम्बन्ध सकारात्मक सोच पोजिटिव आउट कम तथा नकारात्मक सोच नकारात्मक आउट कम लडखडाता लगा .लेकिन उतना भी कमज़ोर नहीं पड़ा ,सकारात्मक सोच के साथ आखिरी नतीजे उतने ही अच्छे और पोजिटिव रहे जितने बेहद असरकारी ,मोस्ट पावरफुल मेडिकेशन के साथ रहतें हैं ।
थियरा- पैतिक मायने हैं इस सकारात्मक सोच के जिसका बहुत कम दोहन शोषण किया गया है .आम तौर पर ही नहीं खासतौर पर चिकित्सक को चिकत्सा देने के साथ-साथ रोग पर निगाह टिकाते हुए यही सोचना होगा ,रोग अच्छा होगा ।
अन -रीयलिस्टिक होप को रीयालिस्तिकाली लेना सोचना होगा ।
साइंटिफिक डाटा सजेस्ट्स देट रीयालिस्तिकाली दिवलपिंग अन -रीयलिस्टिक होप इज गुड फॉर अवर हेल्थ .बेशक यह एक चुनौती है ,"होप अगेंस्ट होप "क्योंकि उम्मीद का महल भी भविष्य की संभावनाओं पर ही टिका है ।
बेशक डॉ चार्ल्स आध्यात्मिक लोगों की तरह आस को सबसे ज्यादा ताकतवर नहीं मानते .बकौल उनके यदि कोई चीज़ किसी दायरे में कुछ सीमा तक काम भी करती है तो इसका मतलब यह नहीं है वह पूरी तरह काम कर रही है आप दवा दारु छोड़कर केवल आस से अच्छे नहीं हो सकते जो ईसाई -चिकित्सक ऐसा करतें हैं बाकी अमरीकियों की बनिस्पत कम उम्र में ही मर जातें हैं क्योंकि यह सिर्फ आस को ही इलाज़ मानतें हैं हर तरह के इलाज़ और दवा दारु से छितकतें हैं .मोस्ट पावरफुल दवा भी ज्यादा देने से जहर बन जाती है .(खाली आस से भी काम नहीं चलेगा ,चिकित्सा के दायरे में ही उसके लाभ लिए जा सकतें हैं कुछ सीमा तक ।).
एक अरबी कहावत के साथ डॉ ,चार्ल्स अपना वक्तव्य आस और चिकित्सा के बारे में संपन्न करतें हैं :"ही हु हेज़ हेल्थ हेज़ होप ,एंड ही हु हेज़ होप हेज़ एवरीथिंग "।
साथ में यह भी जोड़तें हैं :"ही हु हेज़ होप हेज़ हेल्थ ,ऑर एट लीस्ट ए बेटर शोट एट इट".आखिर में यही सिद्ध होता है होप आल्सो वर्कस इन टेंदम विद मोड -रन मेडिसन .
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
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