नोर्मल स्लीप ए प्रिवलेज फॉर नाईट वर्कर्स ।(सी एन एन हेल्थ ,मार्च २६ ,२०११ )।
जोन्स न्यूजर्सी में ट्रक ड्राइवरी करतें हैं .काम के घंटे होतें हैं रात आठ से प्रात :चार बजे तक .जोन्स प्रात :जब भी सोने की कोशिश करतें हैं चार घंटा ही ले देके सो पातें हैं .सूरज का चढ़ना (चिड़ियों का चहचहाना न भी हो )उनकी जैव घडी पहचानती है . दिन की आहट.सूरज का चढ़ना ,उतरना .
कुदरत की सबसे बड़ी दौलत नियामत है उनके लिए आठ घंटा नींद ।आजाये तो ।
ऐसे ही शिफ्टों में काम करने वालोंको जैव घडी की टिक टिक सोने को कहती है ,जबरिया जागतें हैं ये लोग सालों साल शिफ्टों में काम करने के बाद भी ।
नतीजा होता है दिल की बीमारियों ,मधुमेह ,किस्म किस्म के कैंसर के खतरे का वजन बढना ।
शिफ्ट (पाली )में काम करने वाले कर्मचारी की झपकी औरों के लिए भी खतरे खड़े करदेती है ।
अभी तीन दिन पहले रोनाल्ड रीगन वाशिंगटन नेशनल एयर पोर्ट पर दो हवाईजहाजों को बाद आधी रात के एयर कंट्रोलर के बिना ही उतरना पड़ा .ड्युटी पर तैनात कर्मी की आँख लग गई थी ।
गत चार दिनों से वह लगातार रात दस बजे से प्रात :की पाली कर रहा था ।
क्या कहतें है "शिफ्ट वर्क और स्लीप "के माहिर :
दोष काम को ओर्गेनाइज़ करने में भी रह जाता है .जबकि १६ %अमरीकी पालियों में ही काम करतें हैं ।
देर रात और सुबह पौ फटते ही ,पौ फटने से पहले दुर्घटना की संभावना सर्वाधिक हो जाती है ।
थ्री मेल आइलैंड दुर्घटना (१९७९)और चेर्नोबिल एटमी दुर्घताएं इसी वक्त हुईं थीं ।
आदमी रात्रि -चर/निशाचर है ही नहीं .जितनी मर्जी कोफी पिलो ,काल -सेंटर्स में काम करने वाला निगरानी तंत्र आपको जगाये रखने के लिए चुटकले सुना ले ,जितनी मर्जी आप कोफी सुड़क लें .
आदमी मशीन नहीं है .न दिन भर बैठे रहने के लिए डिजाइन किया गया था न रात की पालियों में काम करने के लिए ।२० %पाली में काम करने वालों को झपकी आती ही है .
अलबत्ता अपवाद स्वरूप कुछ लोग रात -भर दक्षता से काम करते देखे जा सकतें हैं ।
शोध होनी चाहिए इन महानुभावों पर ।
इक तरफ शिफतिए सामाजिक जीवन से कट जातें हैं दूसरी तरफ घर परिवार से भी .चौबीस घंटा चलने वाली हमारी जैव घडी हमारे भौतिक ,मानसिक व्यवहार परिवर्तन का विनियमन करती है .
निद्रा के चक्रों (स्लीप साइकिल्स ),हार्मोन स्राव (इंडो -क्रा -इन सिस्टम ),बॉडी टेम्प्रेचर ,अन्य अनेक शारीरिक(शरीर क्रियात्मक ) प्रक्रियाओं को हमारी कुदरती जैव घडी (सर्कादियंन रिदम ,बायोलोजिकल क्लोक )असर ग्रस्त करती है ।
इस कुदरती घडी को हम बदलते दिखतें ज़रूर हैं लेकिन पूरी तरह कामयाब कभी नहीं हो पाते ।स्लीप डिस-ऑर्डर्स के माहिर यही कहते हैं ।
रात की पाली में काम करने के बाद दिन में नींद पूरी करना मुमकिन ही नहीं हो पाता.शरीर ही साथ नहीं देता ।
बेशक रात की पाली में काम करने वाले को जास्ती पैसा मिलता है लेकिन कितनों को इसकी कीमत अपनी सेहत से चुकानी पडती है इसकी विधवत पड़ताल की जाए तो सौदा घाटे का ही सिद्ध होगा .अलबत्ता मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ।
बेहद कम लोग होंगे जो इस नुकसानी की भरपाई दो घटा व्यायाम करके करलेजायें .
स्लीप दिपराई -वेशन ए मेजर फेक्टर्स इन ओबेसिटी :औसतन हम ३२९ केलोरीज़ नींद से महरूम रहने के कारण रोजाना फ़ालतू लेने लगतेंहैं .(इक अध्ययन )।
दिन की पाली छोड़ रात की लेने वालों का साल भर में २०-३० पोंड वजन बढ़ सकता है ।
लीवर (यकृत )का एक काम खाने को पचाना होता है .इसमेसे पुष्टिकर तत्वों को ज़ज्ब करना होता है .विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना होता है ।
देर गए रात तक लीवर में न पर्याप्त स्तर एंजाइम्स का बचता है .ऐसे में खाने को सरल -तर प्रति -रूपों में तोड़ना उससे पुष्टिकर तत्व ज़ज्ब करना यकृत के लिए मुमकिन नहीं रह जाता है .ध्यान दीजिये रात की पाली में देर सवेर खाने वालों का क्या होता होगा ।मेटाबोलिक डिस -ऑर्डर और ओबेसिटी !जी हाँ तकरीबन यही होता है .
हवाईजहाज़ की लम्बी यात्रा में इसका अनुभव हममे से कितने ही कर चुकें हैं .इक टाइम जोन्स से दूसरी में जम्प करना जैव घडी को गडबडा देता है ।
लीवर में पाए जाने वाले एंजाइम्स भी इक रिदम के अनुरूप चलतें हैं घटते बढतें हैं ,दिनमे यकृत चिकनाई सने भोजन और कार्बो -हाई -ड्रेट्स का इंतज़ार करता है .
रात को पिज्ज़ा ठुकवाने के लिए लीवर तैयार नहीं होता है .(ज़ारी ...)
रविवार, 27 मार्च 2011
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