अमरीका में फिलवक्त दो तिहाई वयस्क (बालिग़ ,एडल्ट्स )तथा एक तिहाई बच्चे या तो ओवरवेट हैं या फिर मोटापे की ज़द में हैं .मधुमेह और अन्य क्रोनिक (लाइलाज )बीमारियों की वजह तो यह मोटापा बन ही रहा है अलावा इसके मोटापे के प्रति लोगों के नज़रिए (पर्सेप्सेप्शन )में भी एक बदलाव दिखलाई देता है ।
इस व्यापक महामारी के चलते क्योंकि हर किसी को अपने गिर्द मोटे ही मोटे दिखलाई देतें हैं इसलिए वह अपने प्रति भी आश्वश्त रहता है उसे अपना वजन कम करने की सूझती ही नहीं है ।
अभी अभी एटलांटा में संपन्न हुई अमरीकी ह्रदय संघ की कोंफरेंस में यह नज़रिया और इसकी पुष्टि कूलाम्बिया विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने अपने अध्ययन के शुरूआती नतीजों से की है ।
ओवरवेट माँ और उनके बच्चे परस्पर अपने बारे में यही सोचते हैं "ओ भैया आल इज वेळ "हम मोटे नहीं हैं ,ओवरवेट नहीं है ,ठीक से कयास ही नहीं लगा पा रहें हैं यह परिवार में पनपते मोटापे का ।
इस गलत धारणा के जड़ जमाते चले जाने की एक वजह यह बन रही है ,मोटापा और मोटा होना अब एक नियम है आम है नॉर्म बन चला है अपवाद नहीं .
अध्ययन में बहुलांश लातिनो माताओं और उनके बालकों का था .इनकी (२२२ कुल )की रिक्रूटमेंट बालकों की एक हेल्थ क्लिनिक में एक शहरी सेटिंग में की गई थी .इनसे साक्षात्कार में रिसर्चरों ने इनकी मेडिकल हिस्ट्री (रोगों का पूर्व वृत्तांत )तथा इनकी सामाजिक पृष्ठ भूमि के बारे में पूछ तांछ की .इनकी हाईट ,वेट ,बॉडी मॉस इंडेक्स,किलोग्रेम /(मीटर ) (मीटर )दर्ज़ किया गया .
दो तिहाई माताएं ओवरवेट या फिर ओबीसी तथा ७-१३ साला बच्चों में ४०%की भी यही नियति थी ।
इन लोगों को ज़रा भी अंदाजा नहीं था ये इतना मोटे हैं .ये अपने को न तो इतना ओवरवेट समझते थे ना मोटा .मजेदार बात यह भी रही जो जितना अधिक ओवर वेट या मोटा था वह अपनी असलियत से उतना ही ज्यादा ना -वाकिफ था ,अनभिज्ञ था .(ज़ारी ...)
शुक्रवार, 25 मार्च 2011
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