फ़्रिएद -मन और मारटिन से पूछा गया ,आपने दीर्घावधि लोंगेविटी अध्ययन क्यों किया ?
ज़वाब मिला -मैं चाहता था जिस बात को हम महज़ सहज बुद्धि से सही मानते आरहें हैं ,उसकी वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर भी तो पुष्टि होनी चाहिए ।
आखिर कुछ लोग ज्यादा बीमार पड़ते रहतें हैं और आखिर में यह दुनिया भी जल्दी ही छोड़ जाते हैं जबकि कुछ और हारी -बीमारी से दूर भले चंगे बने रहतें है ,लम्बी उम्र पातें हैं .ऐसा होना महज़ इत्तेफाक नहीं हो सकता ।
आखिर व्यक्तित्व के वे कौन से विधाई तत्व हैं ,कामकाज ,रुझान ,प्रवृत्तियाँ ,सामाजिक संबंधों का वह कौन सा तानाबाना है ,दुनिया और जगत के प्रति वह कौन सा नज़रिया है ,जो कुछ को अपेक्षाकृत स्वास्थ्य और दीर्घजीवन दोनों प्रदान करता है ।
इस बाबत १९७०,१९८०आदि दशकों की व्याख्याओं को सटीक और दोष हीन नहीं माना जासकता .लचर रहीं हैं ये बूझ इसीलिए मैंने पूर्व के रिसर्च वर्क को जो इस दिशा में हो चुका था ,नजर अंदाज़ किया ।
अतीत के चश्मे से लोगों को न देखकर उनका वर्तमान बूझा .ताउम्र बनी रहीं उनकी चारित्रिक विशेषताओं की पड़ताल की .इससे पहले ऐसा किसी ने किया भी नहीं था .इसलिए यह मेरे लिए भी पड़ताल का बड़ा मौक़ा था .ताकि सहज बुद्धि से अब तक मान्य तत्वों धारणाओं को वज्ञानिक कषक पर भी परखा जा सके .(ज़ारी ....).
रविवार, 20 मार्च 2011
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