मंगलवार, 15 मार्च 2011

मधुमेह में आहार की भूमिका ?

मधुमेह रोग में मरीज़ का आहार इलाज़ का इक एहम ,विधाई हिस्सा होता है .आहार ही ब्लड सुगर को इक मान्य रेंज में बनाए रहता है .दवाएं उसे कम करती हैं लेकिन २४ घंटे वह ऊपर नीचे होता रहता है मान्य रेंज से ।
डायबेटिक आहार कैसा हो ?
रोगी सामान्य आहार ले सकता है लेकिन डायबेटिक आहार ऐसा होना चाहिए जो ब्लड सुगर को नियंत्रित कर सके ,उसके विनियमन में सहायक हो .पोषक तत्व बराबर रहें इसमें ।
आहार ऐसा हो जो आपका वेट न बढाए .सामान्य वजन बनाए रखने में मददगार सिद्ध हो ।
सही प्रकार का कार्बो -हाई -ड्रेट इसमें शरीक हो (सिम्पिल नहीं कोप्म्लेक्स जटिल कार्बो -हाई -ड्रेट जो चखने में जबान पर मिठास न लाये ,रेशे वाला हो ।).रेशा ब्लड ग्लूकोज़ को काबू में रखता है .इसीलियें -
इस आहार में भरपूर रेशे हों जिन्हें मोटे अनाजों,साबुत दालों ,सलाद ,कच्चे मीठे खट्टे फलों से आसानी से जुटाया जासकता है ।
भरपूर एंटी -ओक्सिदेंट्स हो .गहरे रंग की तरकारियाँ और फल इसका भरोसे मंद स्रोत हैं .विटामिन -ए ,सी ,ई कुछ खनिज ,पुष्टिकर तत्व ,सेलिनियम आदि ऐसा समूहहै जो आहार में पर्याप्त एंटी -ओक्सीदेंट्स मुहैया करवा सकता है .
सबसे ज्यादा ज़रूरी है ,भोजन समय से लिया जाए और उसी वक्त रोज़ लिया जाए ,नाश्ता भी ।
भोजन एक साथ न लेकर टुकडा टुकडा दिन भर में ६ -७ बार लें ।
प्राकृतिक मिठास का स्तेमाल किया जाए ।ताकि हमारा दिमाग शांत रहे जो बराबर हमें कुछ मीठा खाने के लिए उकसाता रहता है प्रत्येक मील के बाद .एस्पार्तम जैसे कृत्रिम मीठे पदार्थ लेते रहने के साथ यदि मधुमेही व्यायाम भी करता रहे तो सोने पे सुहागा .वजन भी कम होता रहता है ऐसे में .टूथ डिके(दन्त क्षय ,केविटी आदि नहीं बनती ).चीनी से बने पदार्थ दांतों में सड़न पैदा करतें हैं .स्वाद एवं सुगंध दोनों बढाता है पेय और व्यंजनों की एस्पार्तम .
आरामदायक जीवन शैली वाले लोगों को १६०० ,ओवरवेट लोगों को १२००-१४०० ,तथा कम वजन वालों को १८०० केलोरीज़ का भोजन माहिर लेने की सलाह देतें हैं ।
ध्यान रहे सरल कार्बो -हाई -ड्रेट्स में ग्लूकोज़ की यूनिट्स (इकाइयां )एक सीधीश्रृंखला में ,स्ट्रेट चैन से जुडी रहती हैं इसलिए पाचन तंत्र में पहुँचते ही फ़टाफ़ट टूट जाती हैं ग्लूकोज़ का सैलाब लादेतीं हैं आपके रक्त में .ब्लड सुगर में स्पाइक।
जबकि जटिल कार्बो -हाई -ड्रेट्स (कोप्म्लेक्स कार्बो -हाई -ड्रेट्स )में ग्लूकोज़ यूनिट्स की ब्रांचिंग होती है शाखाएं रहतीं हैं जो आहिस्ता आहिस्ता टूटती हैं ,इससे ब्लड ग्लूकोज़ एक साथ बेतरह नहीं बढ़ पाता है .ऐसे में इंसुलिन को काम करने का पूरा मौक़ा मिलता है .कोशाओं का यह द्वारपाल हर कोशा तक ईंधन (ग्लूकोज़ )पहुंचाता है .

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