बुधवार, 16 मार्च 2011

मधुमेह होता क्यों है ?

भ्रष्ट जीवन शैली के अलावा खानदानी सौगात भी है मधुमेह जो शरीर में इंसुलिन एपरेटस(पेंक्रियाज़ की बीटा सेल्स )के ठीक से काम न करपाने की वजह से हो जाता है ।
हमारे शरीर में कार्बो -हाइड्रेट ऊर्जाऔर केलोरीज़ का एक प्रमुख स्रोत है ,शरीर को ६०-७०%केलोरीज़ इन्हीं कार्बो -हाइड्रेट्स से प्राप्त होती है ।
कार्बोहाई -ड्रेट्स पाचन तंत्र में दाखिल होते ही ग्लूकोज़ के कणों में बदलकर रक्त प्रवाह में शामिल हो जातें हैं .भोजन लेने के आधा घंटा बाद ही शरीर में ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ जाता है जो दो घंटों में अपने चरम पर पहुँच जाता है ।
शरीर तथा मष्तिष्क सभी की कोशिकाएं एक स्वस्थ व्यक्ति में इस ग्लूकोज़ का स्तेमाल करने लगतीं हैं .स्माल ब्लड वेसिल्स (छोटी रक्त नलिकाओं )से होकर प्रत्येक कोशिका तक पहुंचता है ग्लूकोज़ इसप्रकार सभी कोशिकाओं को यह ज़रूरी ऊर्जा मुहैया कारवादेता है .यह प्रक्रिया २-३ घंटे में रक्त में ग्लूकोज़ के बढे हुए स्तर को घटा देती है .अगले मील्स के बाद यह पुनः बढ़ने लगता है ।
लेकिन यह सब सुचारू रूप होता तभी है जब ग्लूकोज़ मेटाबोलिज्म ठीक ठाक रहे .ऊर्जा पैदा करने के लिए आक्सीकरण के फलस्वरूप शक्कर ठीक से जलती रहे ,पेंक्रियाज़ चुस्त दुरुस्त हो ।
ऐसा होने रहने पर एक स्वस्थ सामान्य व्यक्ति में खाली पेट होने पर (फास्टिंग सुगर्स )ग्लूकोज़ का स्तर ७०-१०० मिलिग्रेम प्रति -डेसी -लीटर तथा बाद भोजन के १२०-१४० मिलिग्रेम प्रति -डेसी लीटर तक रहना फिर दो घंटा बाद धीरे धीरे कम होता चला जाना सामान्य माना जाता है .(पोस्ट प्रेंदियल ब्लड सुगर्स का अब १२० -१६५ मिलिग्रेम प्रति -डेसी -लीटर होना सामान्य मान लिया जाता है ।).
मधुमेह में कोशिकाएं इंसुलिन की कमी के कारण ग्लूकोज़ से महरूम रह जाती हैं इसका उपभोग ही नहीं कर पातीं .इंसुलिन की कमी की वजह से ग्लूकोज़ कोशिकाओं में दाखिल ही नहीं हो पाता है .इंसुलिन ही वह गेटकीपर है जो ग्लूकोज़ को कोशिकाओं में प्रवेश दिलवाता है .ऐसे में शरीर के प्रमुख अंगों को भी नुकसानी उठानी पड़ती है अतिरिक्त खून में रह गए ग्लूकोज़ की मार से .यह बात वैसे ही है :"पानी में मीनपियासी ( प्यासी )रे मोहे सुन सुन आवत हांसी रे "।
ऐसे में इन द्वारपालों (इंसुलिन )की कमीसे रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर १४० -१६५ मिलिग्रेम प्रति डेसी -लीटर से ज्यादा होजाने पर व्यक्ति मधुमेह ग्रस्त माना जाता है .लापरवाही इस स्तर को ५००मिलिग्रेम %तक भी ले जासकती है .खून में ग्लूकोज़ का स्तर १८० मिलिग्रेम प्रति -डेसीलिटर के पार जाते ही यह मूत्र में आने लगता है .यही रीनल थ्रेशहोल्ड है इससे ज्यादा ग्लूकोज़ गुर्दे संभाल नहीं पाते .दिस इज लोस ऑफ़ एनर्जी (ग्लूकोज़ जो कोशिकाओं को मिलना चाहिए था )इसीलिए व्यक्ति का वजन गिरता चला जाता है ।
सावधान :मधुमेह रोग जटिलताओं का पुलिंदा है .सालों साल ब्लड ग्लूकोज़ का स्तर बढा रहने पर स्माल ब्लड वेसिल्स (छोटी रक्त नलिकाएं) नष्ट होने लगती हैं .नतीजा होता है "माइक्रो -एंजियो -पैथी"।
जटिलताओं के इस पंडोरा बोक्स (पिटारे )में से ही निकलती है ,तंत्रिका तंत्र की खराबी "न्यूरो -पैथी ",गुर्दों की खराबी नेफ्रो -


-पैथी ,नेत्रों की खराबी "डायबेटिक -रेटिनो -पैथी ",दिल की बीमारियाँ आदि ,लेकिन ये सब लापरवाही के चलते ही होता है नियम निष्ठ व्यक्ति डायबिटीज़ के संग -संग सालों साल ३०-४० साल जी सकता है .न डायबेटिक फुट की चिंता न गैंग्रीन की .

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