बुधवार, 16 मार्च 2011

भारी पडती है अल्ज़ाइमर्स रोग की तीमारदारी .

अल्ज़ाइमर्स संघ की सालाना रिपोर्ट "अल्ज़ाइमर्स डिजीज फेक्ट्स एंड फिगर्स २०११ "के मुताबिक़ अल्ज़ाइमर्स के मरीजों कीसेवा टहल करने वाले तीमारदारों की संख्या अब इक करोड़ पचास लाख हो गई है .गत दस सालों में इसमें ३७%इजाफा हुआ है ।
तीमारदारों ने इस दरमियान इनकी सेवा टहल में १७ अरब घंटे खपाए हैं ,जिसकी सालाना कीमत २०६ अरब डॉलर बैठती है (वैसेअपनों की सेवा को डॉलर्स में नहीं तौला जा सकता )।
बेशक इस तीमारदारी ने इनकी खुद की सेहत को बे -साख्ता असरग्रस्त किया है .जीवन की गुणवत्ता तो गई ही कुछ को गुज़ारा करने के लिए अपने रहवास भी बेचने पड़ें हैं .इनकी जीवन प्रत्याशा भी कम हुई है .यही मंतव्य है बिल थिएस का .आप अल्ज़ाइमर्स संघ के मुख्य चिकित्सा और वैज्ञानिक अधिकारी भी हैं ।
२४ घंटों की तीमारदारी तीमारदारों से खुद की संभाल का मौक़ा भी छीन ले रही है .अकसर यहअपने डॉ को भी विज़िट नहीं कर पातें हैं ,बचावी चिकित्सा भी टाले रहतें हैं .इनके फिजिकल और रूटीन स्क्रीनिंग टेस्ट्स भी छूट जातें हैं .इन पारिवारिक केयर -टेकर्स में से रिपोर्ट के मुताबिक़ एक तिहाई अवसाद ग्रस्त हो जातें हैं ।
फिलवक्त ५४ लाख अमरीकी अल्ज़ाइमर्स ग्रस्त हैं .इस शती के मध्य तक इनकी संख्या बढ़कर एक करोड़ साठ लाख तक पहुँच जायेगी .इनमे से ज्यादातर मरीज़ ७५ साला या इससे ज्यादा उम्र के हैं ।
लेकिन अल्ज़ाइमर्स बुढ़ाने की प्रक्रिया का साधारण अंग नहीं है ,जिनमे रोग के लक्षण लेट एज में ज़ाहिर होतें हैं रोग निदान के बाद भी वह ४-८ साल और जी जातें हैं .लेकिन कुछ रोग निदान (डायग्नोसिस )के २० साल बाद तक भी ज़िंदा रहतें हैं ।
जिन परिवारों में अल्ज़ाइमर्स रोगीं हैं वे रोग की प्रक्रिया को समझकर रोगी और खुद के साथ बेहतर तालमेल बना सकतें हैं ।
प्रियजन के व्यवहार में आकस्मिक और स्वभाव से अलग हठकर व्यवहार करना समझ -लीजिये रोग की आहट है .फिलवक्त इस मर्ज़ की कोई भी ऐसी दवा नहीं है जो दिमागी कोशिकाओं के नष्ट होने दिमाग के सिकुड़ते चले जाने को रोक सके .केवल आधे मरीजों में ही उपलब्ध दवाएं रोग के लक्षणोंकी उग्रता को साल छ :महीना ही कम कर सकती हैं .
छ :नै दवाएं आजमाइशों के आखिरी दौर में हैं लेकिन इनमे से कौन सी कारगर सिद्ध होगी २-३ सालों से पहले कुछ भी कहना इस बारे में मुमकिन नहीं है .
कोई भी तीमारदार रोग का मुकाबलातीमारदारी की ज़रूरीयात के अनुरूप इसके सारे चरणों में अकेलानहीं कर सकता .थिएस के मुताबिक़ सभी को बाहरी इमदाद ,मदद की ज़रुरत पड़ सकती है .
डे-केयर सेवायें मरीजों के लिए मसलन" मील्स ऑन व्हील्स" तथा "होम हेल्थ केयर" से खासी राहत मिलती है .अल्ज़ाइमर्स संघ नर्सिंग सेवायें भी जुटाने में मदद करता है परिवारों की उनके मांगने पर .

कोई टिप्पणी नहीं: