इक अध्ययन के मुताबिक़ चीन ,दक्षिणी कोरिया और भारत में लड़कों की चाहत ने पुरुष -स्त्री लिंग अनुपात को खासा विषम बना दिया है ।
कनाडा के एक चिकित्सा संघ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़ इन तीनों मुल्कों में आइन्दा बीस सालों में ही मर्दों की तादाद औरतों से १०-२० %ज्यादा हो जायेगी ।
चीन और भारत के एक बड़े हिस्से में (खासकर उत्तर भारत में )फिलवक्त सेक्स रेशियो एट बर्थ १०५ लड़कों के पीछे सौ लड़कियों का है ।
इन मुल्को में जहां मर्दों को परिवार के लिए बेशकीमती माना जाता है अल्ट्रा साउंड की उपलब्धता ने १९८० के बाद से ही लगातार इस लैंगिक वैषम्य को बढाया है .मेल फिमेल रेशियो इज मच स्क्युड ।
दक्षिण कोरिया में १९९२ में ही जहां जन्म समय लिंग अनुपात (एस आर बी )१२५ था वहीँ उत्तर भारत का भी तकरीबन यही हाल था ।
चीन में इस वैषम्य की एक वजह शहरी क्षेत्रों में वन चाइल्ड पालिसी बनी लिहाजा ग्रामीण अंचलों में जब दूसरे बच्चे की स्वीकृति मिली तब लोगों ने पहला बच्चा लड़की होने पर लड़कियों को इस दुनिया में न आनेदेने का पुख्ता इंतजाम किया .मदर्स वोम्ब बिकेम फीमेल्स टोम्ब।थेंक्स टू अल्ट्रा -साउंड .
२००५ में वहां भी एस आर बी १२१ पर आगया .२००५ में ही ११ लाख लड़के ज्यादा पैदा हुए लड़कियों से .इसी सब के चलते चीन में बीस साल से नीचे के मेल्स की संख्या फीमेल्स से तीन करोड़ बीस लाख (३२ मिलियन )ज्यादा हो गई ।
वहां अब कितने ही युवा शादी न रचाने का फैसला कर चुके हैं .इन्हीं के लिए अवसाद (डिप्रेशन ),आक्रामक ,एवं हिंसक व्यवहार अपनाने का ख़तरा ज्यादा हो गया है ।
व्यापक स्तर पर जन शिक्षण ही एतीत्युड्स में बदलाव ला सकता है .आइन्दा आने वाली संततियों को असंतुलन की इस मार से (महामारी से )बचाना ज़रूरी है .
चीन ,भारत ,दक्षिण कोरिया की सरकारों ने फिमेल फीटी -साइड के खिलाफ सख्त क़ानून बनाए ज़रूर हैं लेकिन उनका सख्ती से पालन दक्षिण कोरिया ही करा पा रहा है ।
फिलवक्त प्रजनन क्षम वर्ग आइन्दा बीस सालों तक हरियान्वियों की तरह अपने लिए दुल्हनिया खरीद कर लाता रहेगा सात समुन्दर पार से .
मंगलवार, 15 मार्च 2011
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