बुधवार, 16 मार्च 2011

डायबिटीज़ मेलाईतस को कब कहाजाता है "मेटाबोलिक सिंड्रोम?"

डायबिटीज़ मे -लाइट्स एक कार्बोहाई ड्रेट मेटाबोलिज्म (कार्बो -हाइड्रेट अपचयन )से ताल्लुक रखने वाला विकार (डिस -ऑर्डर )है जिसमे शक्कर का शरीर में आक्सीकरण इंसुलिन की कमी की वजह से नहीं हो पाता है फलस्वरूप कोशिकाओं तक ऊर्जा नहीं पहुँच पाती है .इसका एकत्रण पहले खून में और बहुत अधिक हो जाने पर मूत्र में होने लगता है .इसीलिए बेहद प्यास लगने ज्यादा पेशाब आने के अलावा मरीज़ का वजन भी कम होने लगता है ।
आपजानतें हैं इंसुलिन का स्राव अग्नाशय (पेंक्रियाज़ )की बीटा सेल्स करतीं हैं .ज़ाहिर है यह स्रावी तत्र ठीक से काम नहीं करपाता है .हाई ग्लूकोज़ ,हाइपर -ग्लाई -सीमिया ,ग्लूकोज़ इन्तोल्रेंस की वजह से फलतय पेशाब मीठा हो जाता है इसीलिए इसे "डायबिटीज़ में -लाइट्स "कह दिया जाता है इसलिए भी ताकि इसे डायबिटीज़ इन्सी -पिडास से अलग देखा जासके जिसमे पेशाब तो ज्यादा आता है लेकिन यह मीठा नहीं होता है क्योंकि इसमें शक्कर नहीं पाई जाती है .बेहद इस बिरले विकार में भी बेहद प्यास लगती है ,तनुकृत (दाय्ल्युतिद )पेशाब ज्यादा बनने लगता है इसीलिए प्यास नहीं बुझती है ।
लेकिन डायबिटीज़ इन -सिपिदास की वजह पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित एक हारमोन "वेसोप्रेसिन "बनता है .दिस पिट -यु -ट्री हार - मोन इज एंटी -डाय -युरेतिक इन नेचर .किडनीमें जल के पुनः अवशोषण का यही विनियमन करता है .इसीलिए यह रोग होने पर मरीज़ को वेसोप्रेसिन दिया जाता है ।
अब आतें हैं मूल सवाल पर आखिर डायबिटीज़ को मेटाबोलिक सिंड्रोम क्यों कहा जाता है .उत्तर एकदम से सरलऔर सपाट है ,जब इसके साथ मोटापा और हाई -पर -टेंसन भी नथ्थीहो जाए .

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