गुरुवार, 10 मार्च 2011

हाव दी ह्यूमेन पेनिस लोस्ट इट्स स्पाइन ?

कैसे आये हैं विकासक्रम में हमारे शरीर के कुछ हिस्सों में बदलाव ?क्या आपने कभी सोचा है ?बेशक मनुष्य और चिम्पांजी के तकरीबन ९७%से भी ज्यादा जींस (जीवन खंड ,जीवन इकाइयां ,जीवन की बुनियादी ईंटें )सांझा हैं ,यकसां हैं लेकिन फिर भी दोनों के व्यवहार ,शक्लो -सूरत और दिखाव में ,बूझ में ,इंटे -लेक्ट में ,बोध या बुद्धि तत्व में भारी अंतर है ।
कोई तो चीज़ है जो आदमी को ख़ास तौर से आदमी बनाती है ,विशिष्ठ और इक दम से अलग औरों के बरक्स .?साइंसदान अब बूझने समझने लगें हैं पहले से थोड़ा ज्यादा ।
आदमी में दिमाग ज्यादा होता है आकार में भी बड़ा ,दिमाग के अन्दर एन्ग्युलर जाइरस भी अपेक्षाकृत बड़ा रहता है ,यही वह दिमागी हिस्सा है जो एबस्ट्रेक्ट कोंसेप्ट्स ,से ताल्लुक रखता है ।
एनी राउनदिद रिज ऑन दी आउटर लेयर ऑफ़ दी ब्रेन इज जाइरस .इट इज ए रेज्ड कन्वोल्युशन ऑफ़ दी सेरिब्रल कोर्टेक्स बिटवीन टू क्लेफ्ट्स (सुल्ची).
नर चिम्पांजी का लिंग (यौनेंद्री,पेनिस )मनुष्यों से आकार में छोटा भी होता है .पेनिसिज़ में स्पा -इन्स भी होतीं हैं .बम्पी और बाउन्सी ,अन -इविन होता है यह जिसकी सतह पर छोटे छोटेनुकीले उभार (टाइनीप्रोजेक्संस )मौजूद रहतें हैं .बेशक यह स्पा -इन्स पोर्क्युपाइन नीडिल्स की मानिंद नहीं है .(पोर्क्युपाइन या साही इक रोडेंट है ,कुतरकर खाने वालाबड़ा सा जीव है जिसकी पूरी बॉडी पर क्विल्स (स्पा -इन्स ),छोटी छोटी सुइयां होतीं हैं जिन्हें यह संकट के समय तान लेता है शत्रु से मुकाबला करने के लिए ।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के जीव -विज्ञानी मनुष्यों और चिम्पांजी में पेनिसिज़ के इस ख़ास अंतर की पड़ताल कर रहें हैं .आप मनुष्यों और उसके नजदीकी रहे अनेक प्राई -मेट्स के जीनोम्स की व्यापक पड़ताल करते रहें हैं .पता चला कुछ ,प्राइमेट्स में जिनमे चिम्पांजी भी शुमार है तकरीबन ५०० ऐसे विनियामक क्षेत्र (रेग्युलेटरी रीजन्स )हैं ,दीज़ आर सिक्वेंसीज़ इन दी जीनोम रेस्पोंसिबिल फॉर कंट्रोलिंग जींस ,जो मनुष्योंमे नहीं है ।
जीनोम एज यु नो इज दी टोटल जेनेटिक मेटीरियल ऑफ़ एन ओर्गेनिज्म ,कम्प्राइज़िन्ग जींस इन इट्स क्रोमोज़ोम्स ।
जीवविज्ञानी डी एन ए की पूरी तालिका (लिस्ट )तैयार कर रहें हैं जो विकासिक काल क्रम में ह्यूमेन जीनोम (जीवन इकाइयों के नक़्शे )से बेदखल कर दिए गए .बेशक ऐसा होने में लाखों साल लगें हैं .नतीजे नेचर विज्ञान साप्ताहिक में प्रकाशित हुएँ हैं इस पूरी जांच पड़ताल के .(ज़ारी ...)

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