गुरुवार, 17 मार्च 2011

व्हाट इज रेडियेशन एंड व्हाई इज इट डेंजरस ?

परमाणु अस्थिर (अन -स्टेबिल )हो जाने पर आपसे आप टूटने लगतें हैं ,रेडियो -एक्टिव हो जातें हैं .(कुदरत में पाए जाने वाले युरेनियम के रेडियो -धर्मी होने की वजह "न्यू-ट्रोंन प्रोटोन अनुपात का १.४ से ज्यादा" होना बन जाता है )।
अस्थिर हो जाने पर परमाणु अपने से छोटे कणों में आप से आप टूटने लगतें हैं .इस टूटने को डिके/डिस -इंटीग्रेशन या विखंडन कहा जाता है ,.जिसके फलस्वरूप ऊर्जा भी मुक्त होती है ।
रेडियो -एक्टिव डिके के फलस्वरूप अव -परमाण्विक कणों(विकिरणों )में गामा रेज़ ,न्यू -ट्रोंस,इलेक -ट्रोंस (बीटा -पार्तिकिल्स )तथा अल्फा कण द्रुत -वेग से नाभिक/न्यूक्लियस के टूटने से निकलतें हैं ।
इनमे से कुछ मानवीय शरीर को बींध डालतें हैं .कोशिकाओं को नष्ट कर देतें हैं .यही रेडियेशन डेमेज कहलाता है ।
अल्फा कण इन सबमे सबसे भारी होने की वजह से स्लागिश होतें हैं ,शरीरकी चमड़ी

को बींध नहीं पातें हैं ,कपड़ों के पार नहीं जापातें हैं लेकिन कैसे भी यदि यह शरीर में प्रवेश पा जाएँ तब नुकसान पहुँचातें हैं ।इनकी आयनीकरण की क्षमता सबसे ज्यादा होती है .
बीटा कण (विकिरण )न सिर्फ चमड़ी को नुकसान पहुँचातें हैं अंदरूनी अंगों पर भी असर करते हैं ।
सबसे ज्यादा खतरनाकशरीर को बींधने में समर्थ एक्स रेज़ और गामा रेज़ (अदृशय प्रकाश )के रूप में ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकतें हैं (यदि इनकी बौछार ज़रा देर तक हो जाए तो ).रोग निदान के दौरान एक्सपोज़र अल्प -कालिक होता है ।
नाभिकीय (एटमी )भट्टियों में ईंधन के रूप में प्रयुक्त युरेनियम जैसे तत्व नॉन -रेडियो -एक्टिव होतें ही नहीं है ,रेडियो -धर्मी ही होतें हैं ।
जापान के नाभिकीय संयंत्रोंमें हालिया कुदरत के कहर की वजह से विस्फोट होजाने से सफ़ेद धुआं उठ रहा है या भाप यही तय करेगा दीर्घ -कालिक नुकसानी को .बेशक इनको वेंटिलेट करना होगा .कोशिश ज़ारी हैं .प्रकृति के आगे कई मर्तबा आदमी बड़ा निरुपाय होके रह जाता है .अनिश्चय के भंवर में फंस जाता है .फिलवक्त ऐसी ही धुंध है .कुछ साफ़ नहीं है .(ज़ारी ....)

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