टाइप्स ऑफ़ डायबिटीज़ इक विहंगावलोकन :
(१)जब डॉ की पर्ची पर डायग्नोसिस (ट्राई -एंगिल का निशाँ )की जगह लिखा होता है "आई .डी .डी .एम् "तब इसका मतलब होता है "इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज़ मे -लाइटिस"यानी इंसुलिन आश्रित /आधारित मधुमेह रोग ।
इसे "प्राई -मरि डायबिटीज़ डायबिटीज़ "/ज्युवीनाइल ऑन सेट डायबिटीज़ भी कह दिया जाता है जो अकसर किशोर किशोरियों में ही प्रकट होता है डायग्नोज़ होता है ।
ऑटो -इम्युनिटी की वजह से इसमें वजन गिरने लगता है ।
रोगी का पेंक्रियाज़ रोग की इस किस्म मे इंसुलिन हारमोन बना ही नहीं पाता इसीलिए इंसुलिन बाहर से देना पड़ता है इंसुलिन शोट्स के ज़रिये ताकि इंसुलिन एक गेटकीपर की तरह शरीर की हर कोशिका को ग्लूकोज़ (ऊर्जा )मुहैया करवा सके ।
(२)एन .आई .डी .डी .एम् का मतलब होता है नॉन -इंसुलिन -डिपेंडेंट -डायबिटीज़मे -लाइटिस यानी इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह रोग .ज्यादातर लोगों मे रोग की यही किस्म पाई जाती है जो अब एक जीवन शैली रोग का दर्जा पा चुका है ।
इसमें अग्नाशय काम तो करता है लेकिन ठीक से नहीं इन्सुलिंबनाता तो है लेकिन ना -काफी रहती है यह इंसुलिन ,पेंक्रियाज़ इसे सही समय पर स्रावित नहीं करपातीहै बे -असर सिद्ध होती है यह इंसुलिन .वजह कुछ भी हो सकती है ,आनुवंशिक भी भ्रष्ट जीवन शैली भी ,मोटापा भी ।
इसमें बिना दवा दारु या जीवन शैली ,खान -पान मे सुधार लाये ख़तरा ही ख़तरा है कोशिकाओं को रोग निदान न होने पर और मर्ज़ के गुप्त रूप से बने रहने पर रक्त में ग्लूकोज़ का बढा हुआ स्तर अन्दर -ही -अन्दर शरीर के प्रमुख अंगों को नुकसान पहुंचाता रहता है .कुछ लोग रोग निदान के बाद भी ला -परवाह बने रहतें हैं उन्हें ही बाद में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है वरना जीवन शैली सुधार ,व्यायाम ,तनाव प्रबंधन और योग के साथ आप इस फिलवक्त लाइलाज रहे आये रोग के साथ जी सकतें हैं सालों साल .
(३)एम् .आर .डी .एम् .: रोग की इस किस्म की वजह "माल -न्यूट्रीशन "बनता है .सिर्फ खाते पीते अघाए लोगों का ही रोग नहीं है ये जैसा अकसर मान समझ लिया जाता है ।
एक पूरी युवा भीड़ (१५-३० )आयु वर्ग की भारत में कुपोषण की मार झेल रही है .ऐसे में पेंक्रियाज़ ठीक से इंसुलिन नहीं बना पाता है ,स्रावी तंत्र बिगड़ जाता है .इन्हें भी इंसुलिन के इन्जेक्संस की ज़रुरत रहती है लेकिन इंसुलिन बंद करने पर ये लोग कीटो -एसिडोसिस के शिकार नहीं होतें हैं (अपने ब्लॉग में मैं अलग से कीटो -एसिडोसिस की चर्चा कर चुका हूँ )।
(४)आई .जी .टी .यानी आईएम -पेयर्ड-ग्लूकोज़ -टोलरेंस :यदि रोगी को ७५ ग्रेम ग्लूकोज़ पिला दिया जाए और रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर सामान्य और मधुमेही के बीच के जैसा हो जाए तब इसका मतलब आईएम -पेयर्ड ग्लूकोज़ टोलरेंस होता है ।
इन लोगों में अकसर रोग के लक्षण प्रकट नहीं होते इस अवस्था में लेकिन भविष्य में रोग अपना सिर खुलके उठाता है ।
(५)जेस्तेश्नल डायबिटीज़ :२-३%गर्भवती महिलायें इसकी चपेट में आजातीं हैं .ऐसे में गर्भ काल में मधुमेह से जुडी जटिलताएं बढ़ जातीं हैं ,भविष्य के लिए भी इसे जच्चा बच्चा दोनों के लिए अशुभ ही माना जाता है .दोनों को ही आगे चलकर रोग का ख़तरा बढ़ जाता है ।
(६)सेकेंडरी डायबिटीज़ :जब अन्य रोगात्मक स्थितियों के साथ मधुमेह की भी दस्तक हो तब इसे सेकेंडरी डायबिटीज़ कहा जाता है .वजह कई हो सकती है :
अग्नाशय में सूजन (इन्फ्लेमेसन ऑफ़ दी पेंक्रियाज़ ),पेंक्रियेतिक कैंसर ,दीजीज़ ऑफ़ दी इंडो -क्रा -इन सिस्टम (स्रावी तंत्र से जुड़े रोग ),एकरो -मेगले ,कुशिंगसिंड्रोम ।
कुछ दवाएं भी इसकी वजह बन सकतीं हैं .(थाइज़ोइद डाय -युरेटिक्स,कोंत्रासेप्तिव पिल्स ,ग्लुको -कोर्तिको-स्तीरोइड्स आदि को इसी वर्ग में रखा जा सकता है )।
इंसुलिन रिसेप्टर डिस -ऑर्डर (इंसुलिन अभि- ग्राही सम्बन्धी दोष ),इंसुलिन -रिसेप्टर एंटी -बॉडी ,इंसुलिन डिफेक्ट यानी इंसुलिन का असामान्य स्राव इसकी दूसरी वजह हो सकतीं हैं .
गुरुवार, 17 मार्च 2011
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