अबतक आपने पढ़ा मनुष्यों और उसके करीबी संगी प्राई- मेट्स में कुछ डी एन ए सीक्युवेंसिज़ होतें हैं जो दूसरे जीवन खण्डों (जींस )के लिए इक स्विच का काम करतें हैं .मनुष्यों में विकासिक काल क्रम में दो स्विच विलुप्त हो गए ,लेकिन चिम्पान्जियों में ये मौजूद हैं ,इसलिए इनमे सेंसरी व्हिस्कर्स भी हैं ,और पीनाइल स्पा -इन्स भी ।
लेकिन कुछ ख़ास डी एन ए लड़ियों की गैर -मौजूदगी ने मनुष्य के दिमाग को आकार में बड़ा होने का मौक़ा देदिया ।
लेकिन प्राई -मेट्स की मेल एनाटोमी के बारे में कुछ विवाद हैं .रिसर्चर्स इक मत नहीं हैं ।
ड्यूक यूनिवर्सिटी की क्रिस्तिने ड्रेया(स्तनपाइयों के सामाजिक व्यवहार और प्रजनन सम्बन्धी विकास की माहिर हैं आप )कहतीं हैं ,चिम्पान्जियों के शिश्न(पेनिस )में जो स्माल बंप है ,उसे स्पा -इन कहना असंगत जान पड़ता है ,.चूहों और बिल्लियों मेंस्पा -इन उभार ज्यादा साफ़ और मुखर (प्रोमिनेंट )हैं .क्योंकि इनकी मादाओं को मेटिंग से पूर्व (संसर्ग से पूर्व ,मैथुन से पहले )पूरा उत्तेजन (स्टिम्युलेसन) चाहिए ,नर की तरफ से तभी वह ओव्युलेट कर पातीं हैं ,अण्डोत्सर्ग(शेड एन ओवम )कर पातीं हैं ।
बट प्राई -मेट्स ओव्युलेट स्पोंतेनियास्ली(तत्काल अण्डोत्सर्ग कर देतें हैं) प्राई -मेट्स .इसीलिए इसकाम के लिए उन्हें स्पा -इन्स की ज़रुरत ही नहीं है ।
जबकि पूर्व में (गत पोस्ट में )चिम्पांजी के बारे में बतलाया गया था ,बम्पी पेनिस उन्हें प्रतियोगी नर का स्पर्म मादा के प्रजनन तंत्र (योनी मार्ग )से साफ़ कर निकाल बाहर करने में मदद करता है .लेकिन इतना स्माल बंप इस काम के लिए यथेष्ट नहीं माना जा सकता ।
वास्तव में चिम्प्स में टेस्तीज़(अंड -कोष /वृषण )का आकार इसीलिए बहुत बड़ा है ,ताकि वह ज्यादा स्पर्म बना सके .प्रतियोगिता में बने रहने के लिए यह ज़रूरी भी है .ताकि नर मादा चिम्प को गर्भवती बना सके ,प्रग्नेट कर सके ।
बिल्ली जैसे मेमल्स (स्तन -पाइयों )में स्पर्म का थक्का बन जाता है .कोएग्युलेट कर जाता है स्पर्म .इसे स्पा -इन्स की मदद से बाहर निकाला जा सकता है .इसीलिए इनके पेनिस में स्पा -इन्स हैं नर कैट के पास ।
मनुष्यों में शुक्राणु (स्पर्म )कोएग्युलेट ही नहीं करता है इसीलिए स्पा -इन्स की ज़रुरत भी नहीं रही है ।
अब सवाल यह पैदा होता है ,फिर चिम्प्स के पेनिसिज़ में बम्प्स की प्रासंगिकता क्या है ?
हो सकता है यह इक इन्टरनल कोर्ट -शिप डिवाइस रही आई हो । ड्रेया ऐसा ही मानतीं हैं .
शुक्रवार, 11 मार्च 2011
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