गत तीस साला शोध के नतीजे बतलातें हैं मांसाहारियों में कोलन कैंसर (बड़ी आंत का कैंसर ),स्तन (ब्रेस्ट कैंसर ),मलाशय (रेक्टम )तथा बच्चे दानी /गर्भाशय (यूट्रस )के कैंसर के ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं बरक्स उनके जो मांसाहारी नहीं है .या अर्द्ध मांसाहारी है .कभी कभार ही मांस का सेवन करते हैं .सप्ताह में एकादी बार ।
जापानी (जो अकसर सिर्फ मच्छी ही खातें हैं )तथा भारतीयों में एवं अन्य गैर मांसाहारियों में ये मामले कमतर दर्ज़ हुएँ हैं ।
जिन इलाकों में कोलन कैंसर के ज्यादा मामले सामने आयें हैं वहां के लोग अपेक्षाकृत अधिक वसा और पशु प्रोटीन लेते देखे गए हैं .जिन इलाकों में इनके मामले कम देखे गएँ हैं वहां के लोगों को आहार में वनस्पति प्रोटीनों और कम चिकनाई (वसा )लेते देखा गया है .वनस्पति स्रोतों से जुटाए गए प्रोटीन कोलेस्ट्रोल को भी कम रखतें हैं ।
माहिरों के अनुसार जिनमे पोषण और जैव विद शामिल रहें हैं आदमी की आंत की बनावट मांसाहार के उपयुक्त नहीं है जहां मांसाहारी पशुओं में आँतों की लम्बाई शरीर की लम्बाई का तीन गुना होती है ताकि खाया हुआ मांस तेज़ी से आँतों से निष्काषित हो सके वहां सड़े नहीं वहीँ मनुष्यों में यह शरीर की लम्बाई की १२ गुना है ।
शाकाहार के तो यह लम्बाई अनुकूल है क्योंकि शाकाहारी भोजन धीरे धीरे खराब होता है लेकिन मांस उदर में जल्दी सड़ जाता है ऐसे में गुर्दों का काम भी बढ़ जाता है गुर्दों (किड -नीज )पर ज्यादा वजन पड़ता है ,गठिया (आर्थ -राय -तिस ),र्युमेतिज्म तथा कैंसर आदि रोगों का ख़तरा सहज ही बढ़ जाता है ।
अलावा इसके मांस की भंडारण अवधि बढाने के लिए उसमे परि -रक्षी रसायन (प्रिज़र्वेतिव्स )भी मिलाये जातें हैं .वास्तव में जैसे ही पशु को जिबह (काटा जाता है )किया जाता है ,मांस सड़ना शुरू हो जाता है तथा कुछ ही दिनों में स्लेटी हरा हो जाता है .इस रंग को दबाये रखने के लिए मीटउद्योग नाईट -राईट जैसे खाद्य संरक्षियों का धड़ल्ले से स्तेमाल करतें हैं .ये दीर्घावधि में कार्सीनोजेनिक (कैंसर पैदा करने वाले )सिद्ध होतें हैं .
अलावा इसके पशुओं को अनेक रसायनों का सेवन कराया जाता है .हारमोंस ,एंटी बायतिक्स ,अनेक शामक दवाएं (त्रान्क्वेलाइज़र्स ),२७०० किस्म की अन्य दवाएं भी दी जाती रहीं हैं .यह प्रक्रिया तब ही शुरू हो जाती जब पशु गर्भस्थ होता है तथा पशु के वध तक चलती रहती है .मांस के सेवन के समय भी यह दवाएं अपनी मौजूदगी दर्ज करातीं हैं .डिब्बाबंद गोश्त/पेकिटों पर इनके बारे में कुछ भी लिखना कानूनी मजबूरी नहीं रहा है मांस उद्योग के लिए ।
बचाव में ही बचाव है .अधिक - से अधिक शाकाहार ,ताज़े फल तथा रेशेदार तरकारियों के सेवन से कैंसर से सहज ही बचा जा सकता है .क्योंकि शाकाहारी भोजन में संतृप्त वसाओं (सेच्युरेतिद फैट्स )एनीमल फैट्स के बरक्स कमतर रहतें हैं कोलेस्ट्रोल भी कमतर रहता है ,फोलेट्स ,एंटी -ओक्सिदेंट्स तथा अतिरिक्त विटामिन सी और ऍफ़ ,कार्टे-नोइड्स तथा फाइटो- केमिकल्स पाए जातें हैं .इसीलिए शाकाहारियों को ह्रदय रोग ,हाई -पर -टेंशन ,मधुमेह ,ओस्टियो -पोरोसिस (अस्थि क्षय )का ख़तरा कमतर रहता है .कोलन कैंसर का जोखिम भी कम रहता है ।
शाकाहारी भोजन इन दिनों आम होते लेकिन गंभीर परिह्रिदय रोगों से बचाव के लिए ज़रूरी बतलाया जाता है .स्केलेरोसिस से बचाव करता है शाकाहार .धमनियां अपेक्षाकृत खुली रहतीं हैं ,लेकिन तेलों का अधिक सेवन शाकाहारियों को भी नहीं करना चाहिए (खुराकी केलोरीज़ का २०-३० % तक वांच्छित है ).
रविवार, 6 मार्च 2011
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