सोमवार, 7 मार्च 2011

विहंगावलोकन :व्हाट इज दी नेचर ऑफ़ एक्सपेंशन ?

व्हाट इज दी नेचर ऑफ़ एक्सपेंशन ऑफ़ दी यूनिवर्स ?
बेशक सुदूर नीहारिकाएं दूर छिटक रहीं हैं लेकिन न तो पृथ्वी और न ही अन्तरिक्ष का कोई और बिंदु सृष्टि का केंद्र है .(सेंटर ऑफ़ एक्सपेंशन ,विस्तार केंद्र जैसा यहाँ कुछ भी नहीं है ।).यहाँ हरेक पिंड बाकी सभी से दूर छिटक रहा है .कोई केंद्र नहीं है खिसकाव का ।
स्थानीय पैमाने (लोकल स्केल )पर अभी भी गुरुत्व का प्रभुत्व कायम है जो पदार्थ को गुरुत्व की डोर से बांधे हुए हैं ,लोकली ।
जिस पैमाने पर यह प्रभुत्व कायम है वह दरहकीकत खासा विशाल है तभी तो इसीलिए नीहारिकाओं के समूह के समूह ,समूचे क्लस्टर्स विस्तार की खिलाफत करते हुए साथ साथ बने रहतें हैं .इक दूसरे की कम्पनी संग साथ नहीं छोड़तें हैं ।
गेलेक्सी या गेलेक्सीज़ के समूह इक दूसरे से दूर अन्तरिक्ष में नहींभागे जा रहें हैं जैसा की समझा गया है ,यहाँ तो स्पेस का ही एक्सपेंशन हो रहा है ,अन्तरिक्ष ही विस्तारित हो रहा है .जैसे गुब्बारे को फुलाने पर उसकी चमड़ी फैलती है ,उस पर बने हुए पैट्रंस गति मान नहीं रहतें हैं ,चमड़ी का फैलाव उन्हें इक दूसरे से दूर दर्शाता है ।यहाँ भी अन्तरिक्ष ही तमाम पिंडों को जो जहां है पिगी -राइड दे रहा है ।दूर दर्शा रहा है .
इस विस्तार की दर (रफ़्तार )निश्चित तौर पर बदल रही है .सृष्टि विज्ञानी इसी बदलाव में आइन्दा होने वाली तब्दीली में बेहद दिलचस्पी रखतें हैं .वही सृष्टि का आखिरी हश्र ,नियति तय करेगा .

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