"तिबेतंस अदेप्तिद तू एल्तित्युद इन्जस्ट ३,०००ईयर्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई ३ ,२०१० )।
दक्षिण -पश्चिम चीन में एक स्वतन्त्र स्टेट था "तिब्बत ".प्रोवंशियल लेविल एडमिनिस्ट्रेटिव एरिया हुआ करता था साउथ -वेस्ट चाइना का .यह औसतन ४००० मीटर्स से भी ज्यादा एल्तित्युद वाला क्षेत्र है .दुनिया का सबसे ऊन्चाइवाला इलाका है तिब्बत .राजधानी ल्हासा है .१९९० की जनगणना के मुताबिक़ तब आबादी थी कुल २,२२०,००० क्षेत्रफल १,२००,००० वर्ग किलोमीटर्स।
यहाँ मुद्द्या यह है ,तिबातियों ने एक ख़ास क्षमता विकसित की इस क्षेत्र की पारितंत्र के अनुकूल अपने को ढालने ,अनुकूलित करने की ।
जबकि सारी दुनिया जानती है औसतन १२,००० फीट से भी ज्यादा समुन्द्र तल से ऊंचे इस इलाके में ऑक्सीजन का स्तर ४० फीसद कम है ।
और इस एल्तित्युद के अनुरूप जैविक व्यवहार करने आनुवंशिक तौर पर अनुकूलित होने में बहुत कम वक्त लिया ,ले देकर ३,००० साल ।
एक नवीन अध्धय्यन से इससे प्री -बर्थ -ऑक्सीजन -deprivation se paidaa hone vaale rogon ko samajhne me madad mil sakti hai .
aakhir yah ab tak kaa fastest genetic change hai .jab ki jeen -उत्परिवर्तन में लाख साल लग जातें हैं ।
केलिफोर्निया विश्व -विद्यालय बर्कले के प्रोफ़ेसर रासमुस निएल्सें ने इस अध्धय्यन का नेत्रित्व किया है .अलावा इसके अध्धय्यन में हाँन चीनी और तिब्बतियों के जीनोम की भी तुलना की गई है .(एक कोशिका में मौजूद तमाम जीवन khando के क्रम को जीनोम कहा जाता है .पूर्ण जीन समुच्चय को जीनोम कहतें हैं .
शनिवार, 3 जुलाई 2010
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