ड्राउनिंग पैन :एल्कोहल ईज़िज़ आर्थ -राइटिस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २९ ,२०१० ,पृष्ठ ,२१ )
क्या कोई ऐसा साक्ष्य जुटाया जा सका है आदिनांक ,एल्कोहल हमारे रोग प्रति -रोधी कुदरती तंत्र की सक्रियता का शमन करता है ?और इसका असर उन रास्तों (पाथ्वेज़ पर पड़ता है )जो र्ह्युमैतिक आर्थ -राइटिसके पनपने की वजह बनतें हैं ., इन्ही रास्तों से होकर जिनके जोड़ों का बर्दाश्त बाहरदर्द पनपने लगता है ?आइये पड़ताल करतें हैं शोध की खिड़की से ।
बेशक दर्द की उग्रता को एल्कोहल का सेवन काबू में रख सकता है ऐसा संकेत हालिया अध्धय्यनों से मिला है.
.लेकिन ? ब्रितानी विश्व -विद्यालय ,शेफ़्फ़िएल्द कैम्पस के प्रोफ़ेसर गेर्री विल्सन के नेत्रित्व में ८७३ आर्थ -राइटिस ग्रस्त एवं १००४ कंट्रोल ग्रुप के अन्य लोगों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है यह अध्धय्यन .गुज़रे महीने में इनमे से किसने कितनी शराब पी इसका जायजा लिया गया .एक प्रश्नावली भी इनसे भरवाई गई ,एक्स रे के अलावा इन सभी का ब्लड टेस्ट्सभी किया गया ,जोड़ों की भी पड़ताल की गई ।
पता चला साफ़ साफ़ ,दो टूक ,जिन लोगों ने अकसर जब जी चाहा शराब पी उनमे दर्द काबू में रहा ,लक्षणों की उग्रता उतनी गंभर नहीं रही ,बनिस्पत उनके जो या तो शराब से दूर रहे या फिर कभी कभार ही इसका जायका लिया ।
यह कहना है र्ह्युमेतोलोजी के माहिर ,रोथेरहम फाऊन -देशन एन एच एस ट्रस्टके जेम्स मैक्सवेल का .एक्स रेज़ के नतीजों ने इनके जोड़ों में अपेक्षाकृत कम नुकसानी (डेमेज )दिखलाया .खून की जांच में इन्फ्लेमेशन (शोजिश और कैसा भी संक्रमण )कम ही देखने को मिला .दर्द ,जोड़ों की शोजिश अपेक्षाकृत कमतर रही ।
बिला शक ऐसे ही नतीजे पूर्व में रोड़ेंट्स(चूहों ,खरगोशों आदि )पर संपन्न अध्धय्यनों में भी मिलें हैं ,लेकिन यह पहली मर्तबा है इंसानों में भी एल्कोहल की मात्रा का सेवन और दर्द की उग्रता ,इतर लक्षणों में एक रिश्ता दिखलाई दिया है .जितनी मर्तबा और जितना ज्यादा पी शराब उसी अनुपात में घटे र्हयुमेतिक आर्थ -राइटिस के लक्षण .
शराब से परहेजी रखने वालों में आर्थ -राइटिस के लक्षणों के उभरने की संभावना चार गुना ज्यादा दर्ज़ की गई बरक्स उनके जिन्होनें एक महीने में कमसे कम दस मर्तबा शराब नोशी की ।
औरतों और मर्दों में अन्वेषण के नतीजे यकसां रहें हैं .दोनों किस्मों में आर्थ -राइटिस की :(१)एंटी -साइक्लिक सित्रयु-लिनेटिद पेप्टाइड तथा(२) "निगेटिव "किस्म में .,आर्थ -राइटिस की .
ज़ाहिर है साइंसदान सिर्फ अनुमान ही लगा सकें हैं .आखिर ऐसा हुआ क्यों ?और आप जानतें हैं ,अनुमान की अपनी सीमाएं हैं .व्यक्ति सिर्फ संभावनाओं में तो नहीं जी सकता ?
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