साइसदानों ने यह पहली बार दर्शाया है, अब शरीर के अन्दर हीअसर ग्रस्त व्यक्ति की कलम कोशाओं से हिप (नितम्ब )या घुटने भी तैयारभी किये जा सकेंगें .
खरगोशों पर किये गए परीक्षणों में साइंसदानों ने इनकी स्टेम कोशाओं को ही राज़ी कर अस्थि और उपास्थि तैयार करने का आदेश देकर एक पहले से निकाल दिया गया जोड़ फिर से तैयार करवाने का करिश्मा कर दिखाया .इतना ही नहीं यह दोबारा अपना काम सामान्य तरीके से करने लगा .इन कामों में वेट बियरिंग और गति ,संचलन(लोकोमोशन)भी शामिल था ।
कूलाम्बिया यूनिवर्सिटीमेडिकल सेंटर में कार्यरत प्रोफ़ेसर जेरेमी मो के नेत्रत्व में यह रिसर्च वर्क संपन्न हुआ है .
अपने प्रयोगों में मो और उनके साथी रिसर्चरों ने १० खरगोशों की फोर्लिम्ब थाई जोइंट निकाल कर इनके स्थान पर जैविक रूप से संगत (बाय -लोजिक्ली कम्पेतिबिल )ढाँचे (स्केफोल्डिंग )लगा दिए .अब एक कुदरती तौर पर पाए जाने वाले पदार्थ का स्तेमाल करते हुए जो कोशाओं की बढवार को प्रेरित करता है रेबिट्स की कलम कोशाओं को उस जगह पहुँचने का इशारा किया गया जहां से जोड़ गायब किया गया था .तथा इन्हें राज़ी किया गया उपास्थि और अस्थि निर्माण के लिए .वह भी दो अलग अलग परतों में ।
४ हफ़्तों में ही खरगोश फिर से अपने सारे काम अंजाम देने करने लगे .विज्ञान पत्रिका लांसेट में इस रिसर्च के नतीजे छपें हैं .
यहाँ विशेष बात यह है ,फोर्लिम्ब थाई जोइंट का पुनर -जनन खरगोशों की अपनी ही कलम कोशाओं से हुआ है .एक दिन इस रिसर्च के नैदानिक उपयोग भी सामने आयेंगें .एक सिद्धांत हाथ लगा है .हिप ,नी ,शोल्डर ,फिंगर जोइंट्स आज कृत्रिम तौर पर तैयार करके ही लगाये जा रहें हैं .कल इनका इसी सिद्धांत को आधार बनाकर पुनर -जनन भी किया जा सकता है मरीज़ की अपनी ही कलम कोशाओं से .. अलबत्ता इससे पूर्व कई वैज्ञानिक और विनयमन सम्बन्धी मुद्दों से रू -ब-रू होना पड़ेगा तब जाकर इसे मंयुष्यों पर आजमाया जा सकेगा .हिप रिप्लेसमेंट के मामले में स्वास्थ्य लाभ देर से मिलता है क्योंकि मनुष्य अपना सारा भार दो पैरों पर उठाता है .जोड़ के पुनर -जनन के दौरान पीरियड ऑफ़ इम्मोबिलिती लंबा रहता है .जड़ता के इस दौर की अपनी समस्याओं से उलझना पड़ेगा .
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2 टिप्पणियां:
जानकारी का आभार.
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