एज रिलेटिड मेक्युलर दिजेंरेशन बुढापे में अकसर होने वाला ऐसा नेत्र रोग है जिसमे आँखों के परदे के पीछे या नीचे असामान्य तौर पर रक्त कोशायें पनपने लगतीं हैं ,कभी कभार रेटिना के भीतर भी प्रकाश संवेदी कोशायें (लाईट सेंसिटिव सेल्स ब्रेकडाउन करने लगती है )टूटने (अप -विकाश का शिकार होने लगतीं हैं )फूटने लगतीं हैं .सेन्ट्रल विज़न के लिए यह बहुत घातक सिद्ध होता है ।केरोतिनोइड्स बहुल खाद्यों का सेवन बचावी उपाय हो सकता है .
बेशक एज रिलेटिड मेक्युलर दिजेंरेशन (ए एम् डी ) लाइलाज है ,लेकिन कमोबेश बचावी चिकित्सा या फिर रोग को मुल्तवी रखने के उपाय मौजूद हैं .
जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी ,बाल्टीमोर कैम्पस के रिसर्चरों ने ६५ -८४ साला बुजुर्गों की बाबत आंकडें जुटाएं हैं .ये तमाम लोग ना सिर्फ नेत्र परिक्षण के लिए आगे आये एक खुराख सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी भी भरी ,
पता चला इनमे से जो लोग सप्ताह में कमसे कम एक दफा या और भी ज्यादा बार फेटि फिश लेते रहे थे ,इनमे ए एम् डी रोग की एडवांस्ड स्टेज तक पहुँचने की संभावना ६० फीसद कम रह गई थी बनिस्पत उनके जो कभी कभार ही ,बामुश्किल हफ्ते में एक दफा ही फेटि फिश का सेवन कर रहे थे ।
बेशक सालमोन ,माक्केरेल,अल्बकोरे टूना ऐसी तेलीय मच्छी हैं जो ३ ओमेगा फेटि एसिड्स से भरपूर हैं ,तथा यह इस नेत्र रोग को मुल्तवी रखने में पूर्व अध्धय्यनों में भी कारगर पाया गया है .लेकिन एडवांस्ड स्टेज तक रोग के आजाने पर विशेष कुछ नहीं किया जा सकता .जो हो सकता है ,वह संभावित बचाव ही है .कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है .नेत्र रोगों के विज्ञान पत्र "आव्थेल्मोलोजी"में उक्त अध्धय्यन के नतीजे छपें हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-फिश ईटर्स शो लोवर रिस्क ऑफ़ एज रिलेटिड आई डिजीज (न्यू -योर्क /रायटर्स /मुंबई मिरर /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई २१ ,२०१० ,पृष्ठ २४ ,पृष्ठ २१ )
बुधवार, 21 जुलाई 2010
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