ब्रिस्टल रोबोटिक्स लैब के रिसर्चरों ने एक ऐसा रोबोट (बोट )बना लिया है जो किसी बाहरी स्रोत से ऊर्जा ना जुटाकर खुद खाने पचाने और मल त्याग की क्षमता से लैस होने के साथ अपनी तमाम ऊर्जा खुद ही तैयार करेगा .इए इको बोट ३ कहा जा रहा है ।
एक हफ्ता तक यह बहरी अनुदेशों के बिना खुद अपना काम करेगा .प्रकाश के प्रति सचेत रहेगा ,थोड़ा सोचने समझने का भी माद्दा होगा इसमें .ऊर्जा की अपनी ज़रूरीयात यह मल संशाधन से (खुद त्यागे हुए एक्स्क्रीता)से करेगा .अब तक तैयार किये गए बोटों की तरह इसे बैटरियों ,बिजली के सहारे नहीं रहना पड़ेगा ।
इसे ब्रेड -बोट भी कहा समझा जा रहा है जो वास्तव में एक कृत्रिम गट(आंत) से लैस है हमारी तरह.इसी आंत में जीवाणु खाने को ठिकाने लगायेंगें .पाचन करेंगें खाद्य का इसी गट में ।
वास्तव में यह दो सेट्स २४ एम् ऍफ़ सी (माइक्रो -बिअल फ्यूल सेल्स के) हैं .यही सेल्स खाने की यांत्रिक ऊर्जा को हाड्रोजन के रूप में इलेक्त्रिसिती में तब्दील कर देनेगें ।
इसी हाइड्रोजन का एक अंश रोबोट को आवश्यक विद्युत् धारा (करेंट )मुहैया करवाएगा .काम करने के लिए ज़रूरी पावर पैदा करेगा .बाकी बचा हिस्सा एक और कक्ष में ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर जल तैयार करेगा ।
वेस्ट मैटर एक बार फिर फीडर तक भेजा जाएगा .यहाँ फिर वही दोबारा मेटाबोलिक प्रक्रियाएं (चय-अपचय ) ज्यादा से ज्यादा पावर पैदा करेंगी ।
जहां ना पहुंचे मानव वहां पहुँच सके रोबोट .रिमोट एरिया एक्सेस ,रिलीज़ एंड फोरगेट मिशन में जहां एनर्जी ऑटो नमी बड़ी ज़रूरी होती है इन बोटों की अतिरिक्त उपयोगिता साबित होगी ।
पहुँच से बाहरचले जाने पर इसे सर्विसिंग की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी ।
फिलवक्त यह भोजन से प्राप्त कुल एक फीसद ऊर्जा का ही स्तेमाल कर रहा है .जबकि मनुष्य इसका ३० फीसद काम में ले लेता है .कुल मिलाकर यह दिन भर में २१ सेंटीमीटर ही रेंग पाता है .(ज़ारी )
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