रविवार, 25 जुलाई 2010

अवसाद से राहत के लिए

"देट राइजिंग फीलिंग ",दी की टू यूओर डार्केस्ट मुमेंट्स ऑफ़ डिप्रेशन मे लाइ इन सिम्पिल ,फोकस्ड ब्रीदिंग .हेअर इज हाव (यू /हेल्थ टिप्स /मुंबई मिरर /जुलाई २४ ,२०१० ,पृष्ठ ,३२ ).
बेशक अवसाद को अब एक स्वतन्त्र रोग का दर्जा मिल गया है जिसका एक बायो -केमिकल आधार भी है और अब इसे इतर मानसिक विकारों का आनुषांगिक ,संग साथ लक्षण लिए चले आना वाला रोगमात्र नहीं माना जाता है ,खुद में एक आम फ़हम रोग बन चला है डिप्रेशन .डी एस एम् ४ (डायगो-नोस्तिकल -स्तातिस्तिकल मेन्युअल ४ )वर्गीकरण में इसे बाकायदा एक अलग मानसिक रोग का दर्जा मिल चुका है ।
माहिरों ने बतलाया है हमारी युवा भीड़ (युव जन )अधैर्य के चलते जल्दी ही इस ला -इलाज़ बनते (जीवन शैली?) रोग की चपेट में आ रहें हैं .चाहे वह विवेक बाबाजी की आत्महत्या का मामला हो या हाल ही में कई और मोडिल्स बनने की इच्छुक शख्शियत का .वजह एक ही निकल कर आ रही है "इम्पेशेंश ".गुजिस्ता बरसों में परीक्षा के नतीजों को लेकर आये दिन आत्म -ह्त्या के मामले सामने आते रहें हैं यहाँ तक की नौनिहाल भी इसकी चपेट में आने लगें हैं .और यह सब उस देश में हो रहा है जो योग गुरु बना रहा है दुनिया जहान का .
क्या कहतें हैं दी योग इंस्टिट्यूट सान्ताक्रुज़ के माहिर ?
बेशक मानसिक चिकित्सा का एक महत्त्व पूर्ण अंग ,आनुषांगिक ,संपूरकचिकित्सा के रूप में उभर कर आई है योग चिकित्सा .अंतर -अनुशाशन चिकित्सा के इस दौर में ऐसा होना सहज स्वाभाविक भी है ।
आखिर काया और व्यक्ति के मानस (मन )दोनों को ही असरग्रस्त करता है -अवसाद .साइको -सोमाटिक ही नहीं ,बायो -साइको -सोसल भी है यह मानसिक विकार .आनुवंशिक वजहों के अलावा हमारे संवेगों और व्यवहार को संचालित करने वाला मनो -विज्ञान ,हमारा सामाजिक ,पारिवारिक परिवेश भी एक ट्रिगर का काम करता है अवसाद को उभारने में .ज़ाहिर है अवसाद एक वजहें अनेक ।
अपनेआप को गैर ज़रूरी मानने समझने लगना ,बेकार ,नाकारा मान बैठना रोग की जड़ में है .आत्म विशवास की कमी भी .
सही नज़रिया अपने, अपने परिवेश के प्रति ,अपनों के प्रति ,अपनी खुराख ,कसरत के लिए बस थोड़ा सा मार्जिन दैनिकी में रखने की ज़रुरत है ।
ब्रीदिंग एक्सर- साइज़ ,मेडिटेशन का आपकी बात बेबात रिएक्ट करने खीजने की आदत को छुडाने में बड़ा हाथ साबित हो सकता है .अष्ट योग का (योग के आठ अंगों में से एक )महत्वपूर्ण अंग है ध्यान ।
टेकलिंग डिप्रेशन :
प्राणायाम और "निस्पंध भाव "का नियमित अभ्यास आत्म हीनता की भावना से मुक्त करवाने में विधाई भूमिका निभा सकता है .सबसे बड़ा ख़तरा अवसाद में आत्मघात का ही बना रहता है जिसके मूल में खुद को एक दम से असहाय समझ बैठने की प्रवृत्ति काम करती है ।
आसनों को कार्य स्थल के अनुरूप ढाला जा सकता है .बस थोड़ी सी स्ट्रेचिंग ,बेन्डिंग ,रिलेक्स्ड ब्रीदिंग ही तो काम के बीच बीच में एक छोटे से अंतराल (ब्रेक के बतौर करनी है ).कोई पहाड़ नहीं खोदना है ।
बेशक योग एक पूरक आनुषांगिक चिकित्सा ही रहेगी .ज़रूरी बायो -केमिकल्स का ब्रेन केमिस्ट्री को दुरुस्त करने रखने में अपना एहम रोल है और बना रहेगा .आखिर बायो -केमिकल इम्बैलेंस ही तो हैं मानसिक रोग ,साइकेट्रिक एल्मेंट्स ।
कुछ जैव -रसायन ज़रूरत से ज्यादा या फिर कमतर बनने लगतें हैं मस्तिष्क में ,मानसिक रोग होने पर .बस इनकी मात्रा का विनियमन ही ड्रग थिरेपी है (रसायन चिकित्सा है )।
नियम निष्ठ होकर दवा तो अपने मनोरोग विद के अनुदेशों पर लेनी ही है .लेकिन योग के संग सलाह मशविरे ,क्लिनिकल कौंसेलिंग का अपना असर पड़ता है .सकारात्मक सोच जादुई असर दखाती है ।
त्रि -आयामीय हमला बोलिए अवसाद पर :
ब्रीदिंग ,एक्सरसाइज़ और खुराख का सही चयन और दैनिकी में समावेश अवसाद को परे रखेगा ।
अलबत्ता अपने शरीर का मिजाज़ आप और केवल आप जानतें हैं .कौन सा व्यायाम ,कौन सी कसरत ,कौन से आसन आपकी सेहत मेडिकल कंडीशन यदि कोई है ,उसके अनुरूप हैं यह सिर्फ आपको देखना समझना है .बाहरी मदद ले सकतें हैं ।

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