साइंसदानों ने एक ऐसे जीवाणु का पता लगा लिया है जो अन्तरिक्ष यात्रा जैसी कठोर परिस्थितियों का भी मज़े से मुकाबला कर सकता है .इसे "कानन दी बेक्टीरिंऍम "कहा जा रहा है .माइक्रोब (अति -सूक्ष्म जीवाणु ,कीड़ा या अन्य जीव रूप ,जर्म या इन्सेक्ट )"देइनोकोक्कुस रदिओदुरन्स को शक्तिशाली विकिरण की मार झेलने में ,गलनांक बिंदु तक के निम्तर तापमानों यहाँ तक निर्वात (वेक्यूम )में सही सलामत बने रहने की क्षमता से लैस पाया गया है .समझा जाता है ,उल्काओं (मितीयोरोइट्स ),धूमकेतुओं अन्तरिक्ष के इतर पिंडों पर ऐसी ही विषम परिस्थितियाँ हैं .सिम्युलेसन टेक्नीक्स से ऐसे ही माहौल में इसे रख कर देखा गया है ।
ज़ाहिर है ऐसी जीवन के लिए विषमतर परिस्थितियाँ किसी भी जीवन क्षम प्रतिरूप ,सूक्ष्मतर जीव को फ़ौरन नष्ट कर देंगी .लेकिन यह जीवाणु"डी .रेडिओ -दुरंस " ना सिर्फ अपने अस्तित्व को बचाए रहा ,परिस्थितियाँ सामान्य होने पर प्रजनन भी करता रहा .
यही गुण इसको सौर मंडल के निर्माण के आरंभिक चरण में ग्रहों के बीच परस्पर जीवन रोपने के सक्षम साबित कर देतें हैं .हो सकता है जीवन का सूत्रपात ऐसे ही किसी "बग "से हुआ हो .खगोल विज्ञानियों का एक बड़ा खेमा मानता रहा है "पृथ्वी पर जीवन उल्काओं ,धूमकेतुओं "के ज़रिये ही पहुंचा होगा .इतर ग्रहों पर भी अन्तरिक्ष से आई चट्टानों के ज़रिये ऐसा हो सकता है ।
ऐसा प्रतीत होता है "कोनन दी बग "के पास इसके जीनोम की ४ -१० प्रतियां हैं .यही इसकी जिजीविषा का राज़ है .जीनोम का मतलब हैकिसी भी कोशा (सेल )या जीवित इकाई में जीवन खण्डों या जीवन इकाइयों यानी जींस का पूरा सेट .जो हो खगोल -विज्ञान के माहिरों में इस अन्वेषण से खासी उत्तेजना (सनसनी )है .
सन्दर्भ -सामिग्री :-"कोनन दी बग "मे हेव ब्रोट लाइफ तू अर्थ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई १९ ,२०१० ,पृष्ठ ,१५ )
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