अर्थ्स अपर एत्मोस्फ़ीअर कोलेप्सिज़ ,एक्सपर्ट्स स्तम्प्द बाई एक्स्ट्रा -ओरदिनरी लेविल ऑफ़ थर्मो -स्फीअर श्रीन्केज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई १८ ,२०१० )।
बेशक पृथ्वी के वायुमंडल और बाहरी अन्तरिक्ष का इंटरफेस ,दोनों को अलग करने वाली ऊपरी वायुमंडल की सबसे बाहरी पर्त सौर सक्रियता के संग फैलती सिकुड़ती रही है.अलावा इसके इतनी ऊंचाई पर इस बाहरी पर्त में पहुँचने पर ग्रीन हाउस गैस कार्बन -डाय -ऑक्साइड भी एक प्रशीतक पदार्थ ,कूलेंट का काम करने लगती है ,नतीजा होता है इस पर्त का सिकुड़ना, सिमटना, कोंत्रेक्सन.लेकिन दोनों के सांझा प्रभाव से जितना श्रीन्केज़ अपेक्षित था ,वर्तमान श्रीन्केज़ अप्रत्याशित तौर पर उससे भी दो से लेकर तीन गुना ज्यादा है .घनत्व भी इस सिक्डाव (कोंत्रेक्सन )की वजह से ३० फीसद घट गया है ।
हालाकि मौसम का मिजाज़ इस सिमटाव से असर ग्रस्त नहीं होगा लेकिन यही बात पृथ्वी की कक्षा में स्थापित उपग्रहों के बारे में नहीं कही जा सकती .नेवल रिसर्च लैब के जॉन एम्मेर्ट के अनुसार यह सिक्डाव गत ४३ सालों में सर्वाधिक है .विज्ञान पत्रिका "जर्नल जिओ -फिजिकलरिसर्च लेटर्स के जून १९ अंक में इस अध्धय्यन की पूरी रिपोर्ट छपी है ।
पृथ्वी की सतह से ९० -६०० किलोमीटर ऊपर ताप मंडल (थर्मो -स्फीअर )है .शूटिंग स्टार्स (आसमान में जलती उजली लकीर ,उल्काएं वायुमंडल के घर्षण बल से यहीं ,थर्मो स्फीयर .,में अकसर जल कर ख़ाक हो जाती हैं ,कभी कभार कुछ बिना जले पिंड पृथ्वी पर आ गिरतें हैं ,ध्रुवों के नीचे दबे पड़ें हैं असंख्य सूक्ष्म उल्का पिंड )नोर्द्रण और सदर्न लाइट्स की सतरंगी नुमाइश (आराराज़ )यहीं इन्हीं परतों में सजती है .यहीं कहीं हैं अन्तरिक्ष शटल और अन्तरिक्ष स्टेशन ।इन्हीं परतों में आयन मंडल भी है .
सौर सक्रियता एक ११ साला आवधिक चक्र के तहत कम ज्यादा होती रहती है ,महत्तम और न्यूनतम होती रहती है ।
सोलर मेक्सिमा के दौर में यहाँ बेशुमार अल्ट्रा वायलेट रेज़ पहुंचकर थर्मो -स्फीअर को गरमा देती हैं ,विस्तार (एक्सपांशन )कर देती हैं इसकी परतों का .,और सोलर मिनीमा इन परतों के सिमटने (कोंत्रेक्सन,श्रीन्केज़ )की वजह बन जाता है ।
कार्बन -डायोक्साइड जो वायुमंडल की निचली परतों में हीट ट्रेप कर विश्व -व्यापी तापन की एक वजह बनती रही है वही कार्बन डायोक्साइड इन परतों तक पहुँचते पहुँचतेइतनी ऊंचाई पर एक कूलेंट का काम करने लगती है .फलस्वरूप थर्मो -स्फीअर और सिकुड़ने लगता है ।
नासा के साइंसदानों के मुताबिक़ २००७-२००९ के दरमियान सौर सक्रियता न्यूनतम स्तर (सोलर मिनिमम )पर थी .सौर धब्बे (सूरज के अपेक्षाकृत कम गरम भाग ,काले धब्बे )तकरीबन नदारद थे ,सौर -फ्लेयर्स (सौर ज्वालाएं )भी अस्तित्व तलाश रहीं थीं अपना ,नॉन -एग्ज़िस्तेंत थीं ,इस दरमियान .थर्मो -स्फीअर को नतीज़न सिकुड़ना तो था लेकिन इतना नहीं जो साइंस -दानों को भी हतप्रभ करदे .कार्बन -डायोक्साइड से पैदा सिक्डाव सोलर मिनीमा से पैदा सिमटाव के संग मिलकर भी इसकी व्याख्या ना कर सके ।
बत्लादें आपको हम वायुमंडल की सबसे निचली परत में अपने घरोंदे बनाए हुए हैं ।
इस परत का नाम है "त्रोपो -स्फीअर यानी विक्षोभ मंडल" ,आंधी तूफ़ान ,झंझा -वात , घन -गर्जन ,टोर्नेडो यहीं बनतें हैं .पृथ्वी के ऊपर ६ -१० किलोमीटर ऊपर तक पसरी फ़ैली है यह परत ।
समताप -मंडल :(स्त्रातो -स्फीअर )पृथ्वी के १०-५० किलोमीटर ऊपर तक फैला है .(१५ -५० किलोमीटर के बीच में ओजोन कवच है )।
मिजो -स्फीअर :५० -८० किलोमीटर तक जाती है यह मंझोली परत .इसके पार है थर्मो स्फीअर ।
थर्मो -स्फीअर :८५ -६०० किलोमीटर्स ऊपर तक पहुँचते पहुँचते यह परत विर्लिकृत होती चली जाती है .यहाँ ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है .यूँ एक परत वायुमंडल की दूसरी का अतिक्रमण करती है .ओवार्लेपिंग है इलेक्ट्रो -मेग्नेटिक स्पेक्ट्रम सी ।इसी में समाहित है आयन मंडल जो एक शीशे कीतरह रेडिओ तरंगों को पृथ्वी पर लौटा देता है .
मंगलवार, 20 जुलाई 2010
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