बीसवीं शती के आँख खोलने के साथ ही (१९००एस )फिल्मों का चलन आया .यही वह दौर था जब थियेटर्स (नाट्य मंच ) तस्वीर को ज्यादा से ज्यादा दर्शनीय साफ़ सुथरा बना रहे थे .व्यूइंग क्वालिटी को आदर्श तम बनाने का दौर था यह ।
१९२० के दशक में बेहतर छवि के लिए फिल्म निर्माताओं नेस्क्रीन निर्माण में सिल्वर का स्तेमाल आरम्भ किया .इसका परावर्तक सर्फेस बेहतर छायांकन प्रस्तुत करता था .सारा खेल तमाशा छवि दर्शन ही तो था ।
सिल्वर का विकल्प आते आते सिल्वर का स्तेमाल चलन से बाहर ज़रूर हो गया .सिल्वर लेन्तिक्युलर स्क्रीन्स अब दिखलाई देने बंद हो गए थे .लेकिन शुरूआती दौर में स्क्रीन निर्माण में सिल्वर का स्तेमाल चलन में आया ,तो सिल्वर स्क्रीन कहने का रिवाज़ एक बार चल निकला तो चल निकला .आज भी जारी है .रूपहले परदे को तब से आज तलक "सिल्वर स्क्रीन "ही कहा जाता है .
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