शल्य चिकित्सा के माहिरों ने अफगान युद्ध में बुरी तरह घायलएक वायुसैनिक को कामयाब शल्य के ज़रिये बचाकर सनसनी पैदा करदी है, डायबिटीज़ से ग्रस्त लोगों में .इस वायु सैनिक का अग्नाशय (पैनक्रियाज़ ,इंसुलिन निर्मात्री ग्लेंड)बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था .इसे काट कर निकाल देने के अलावा और कोई चारा (विकल्प )ही नहीं था .लेकिन लेदेकर माहिरों ने फिर भी कुछ इंसुलिन निर्मात्री कोशायें (इंसुलिन प्रोद्युसिंग सेल्स )को बचा लिया .इन्हीं बची खुची कोशिकाओं को यकृत (लीवर )में रोप दिया जहां यह आंशिक रूप से अग्नाशय की भूमिका में आ गईं हैं .ऐसा ना हो पाने पर इस व्यक्ति को ता -उम्र प्राइमरी दाय्बेतिक की तरहही इंसुलिन की सुइयों पर ही जीवन निर्वाह करना पड़ता ।ऐसे में एक बड़ा जोखिम बना रहता अंधत्व ,किडनी के नाकारा होने तथा ह्रदय -रोग का ।
कितने ही मरीज़ हर साल पैन्क्रियेताइतिस (इन्फ्लेमेसन ऑफ़ दी पैनक्रियाज़ )का शिकार हो जातें हैं ,दुर्घटना में इनका उदर(एब्दोमंन )बुरी तरह क्षति - ग्रस्त हो जाता है .इन सब के लिए आस बंधाई है इस बेमिशाल कामयाब सर्जरी ने ।
इस घायल वायु सैनिक को गत बरस अफगान पाकिस्तान सीमा पर बुरी तरह घायल होने पर अमरीकी बेस "बगराम "ले जाया गया था .जहां सैनिकों की एक टीम ने इसकी २५ फीसद पैनक्रियाज़ को निकाल दिया .वाशिंगटन के एक ख़ास अस्पताल में जहां घायल सैनिकों को इलाज़ के लिए लाया जाता है पहुँचने पर पता चला ,इसके अग्नाशय से पाचक एंजाइम्स का स्राव हो रहा था (दाइजेस्तिव एंजाइम्स वर लीकिंग फ्रॉम हिज़ पैनक्रियाज़ ,पुटिंग हिज़ लाइफ एत रिस्क एज दे थ्रेतिंड तू ईट अवे अदर ओर्गेंस ।).
यहाँ इस मोड़ पर पैन्क्रियेतिक आइलेट्स (आइलेट्स ऑफ़ लंगेर्हंस ),स्रावी तंत्र के लिए इंसुलिन तैयार करने वाली कोशाओं का एक समूह ,की हार्वेस्टिंग की गई .तदनंतर इन्हें घायल सैनिक के यकृत में रोप दिया गया ।
(दी वुन्डिद एयर -मेंस पैनक्रियाज़ वाज़ फलों तू मियामी व्हेयर इट वाज़ रीद्युस्द तू ए पल्प बाई दाइजेस्तिव एंजाइम्स .दी पल्प वाज़ देन स्पन इन ए चेंबर तू सेपरेट आउट दी आइलेट्स .दी २२ ००० साल्वेज्द आइलेट्स वर देन फलों तू वाशिंगटन एंड इन्जेक्तिद इनटू हिज़ लीवर .)
सन्दर्भ -सामिग्री :-वुन्डिद सोल्ज़र्स ट्रीटमेंट रेज़िज़ होप फॉर दाय्बेतिक्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,पृष्ठ १५ )
सोमवार, 19 जुलाई 2010
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