शुरू में ही शिनाख्त और इलाज़ की पहल मलेरिया को ना सिर्फ बिगड़ने से रोके रहेगी आपकी जेब और मरीज़ की जान पर भी भारी नहीं पड़ेगी .विश्व -स्वास्थ्य संगठन द्वारा तजवीज़ किये गए इलाज़ पर ,दो दवाओं के पूरे कोर्स पर कुल खर्च आयेगा मात्र २००- ४०० रुपैया .गत वर्ष की तुलना में इस बरस मुंबई में ना सिर्फ मलेरिया के ज्यादा मामले दर्ज़ हुएँ हैं (आदिनांक १०,००० के पार ), २०- ३० फीसद मरीजों को गहन चिकित्सा की भी ज़रुरत पड़ी है .जुलाई माह में ही अब तक १३ लोगों की मौत मलेरिया की वजह से ही हो चुकी है ।
हिंदुजा अस्पताल के डॉ खुस्राव बजन के मुताबिक़ इस बरस पिछले साल से दोगुने मामले अब तक प्रकाश में आ चुकें हैं .आप अस्पताल के गहन चिकित्सा विभाग के मुखिया हैं .कस्तूरबा अस्पताल संक्रामक रोग विभाग के माहिर एवं जसलोक अस्पताल के कंसल्टेंट डॉ ॐ श्रीवास्तव भी इस बरस के हालातों से चिंतित हैं ।
जिस अनुपात में मरीज़ आ रहें हैं उसी अनुपात में पेचीला मामले भी सामने आयें हैं ।
मलेरियावक्त से ध्यान ना देने इलाज़ ना करवाने पर हमारे दिमाग ,फेफड़ों ,गुर्दों को भी अपनी चपेट में ले सकता है .ब्लीडिंग दिस -ऑर्डर की भी वजह बनता है .ऐसे में ब्लड कंपोनेंट थिरेपी ,वेंटिलेटर पर मरीज़ को रखने की मजबूरी और डायलेसिस मरीज़ की जेब पर भारी पडती है ज़िन्दगी पर भी ।
वजह बनती है "सेप्सिस ".गंभीर सेप्सिस की अवस्था में मरीज़ को ३ -४ हफ्ता गहन चिकित्सा कक्ष में रखना ज़रूरी हो जाता है ।
क्या है सेप्सिस ?
आम भाषा में कहें तो संक्रमण की वजह से किसी भी अंग में पस(मवाद पड़ने )को सेप्सिस कह दिया जाता है .चिकित्सा विज्ञान की भाषा में बात करें तो -"सेप्सिस इज दी स्प्रेड ऑफ़ एन इन्फेक्शन फ्रॉम इट्स इनिशिअल साईट टू दी ब्लड स्ट्रीम ,इनिशिएतिन्ग ए सिस्टेमिक रेस्पोंस देट एड्वार्सली अफेक्ट्स ब्लड फ्लो टू वाइटल ओर्गेंस .बेक -टीरिअल इन्फेक्संस आर दी मोस्ट कोमन सोर्स ऑफ़ इनिशिअल इन्फेक्सन ,बट सेप्सिस आल्सो अकर्स विद फंगल ,पैरा-साईटिक,एंड माइको -बेक -टीरिअल इन्फेक्संस ,पट्टी -क्युलारली इन इम्यूनो -कम्प्रोमाइज़्द पेशेंट्स ।".
ऐसे में संक्रमण किसी भी वाइटल ओर्गेंन दिमाग ,गुर्दे ,फेफड़ों आदि के लिए जान लेवा बनेगा ."दी कंडीशन ऑर सिंड्रोम कौज़्द बाई दी प्रिज़ेंस ऑफ़ माइक्रो -ओर्गेनिज्म ऑर देअर टोकसिंस इन दी टिश्यु ऑर ब्लड स्ट्रीम "यानी सेप्सिस से हर हाल में बचना है ।
बेशक कई मरीजों को १०३ से ज्यादा ज्वर (ताप या जूडी ,टेम्प्रेचर ) ज़कड़े रहता है .कई को ओरल पिल्स (खाने वाली गोलियां )माफिक नहीं आतीं हैं ,इन्हें इंट्रा- वेनस ड्रिप के ज़रिये (सुइयों के द्वारा )दवा देना ज़रूरी हो जाता है ,लेकिन ज्यादा तर मरीज़ रोग के आरंभिक चरण में संभल जातें हैं ,बा -शर्ते इलाज़ में देरी ना हो ,दवा दारू और खुराख ठीक से डॉ के अनुदेशों के मुताबिक़ ली जाए .यही कहना है नित्यानंद नर्सिंग होम विले पार्ले (ईस्ट )के डॉ हरीश भट्ट का ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-मलेरिया केसिज डबल दिस ईयर (टाइम्स सिटी ,मुंबई ,दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई जुलाई २७ ,२०१० )
मंगलवार, 27 जुलाई 2010
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