शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

गत पोस्ट से आगे आत्म निर्भर रोबोट (ज़ारी )

फिल वक्त खाने से प्राप्त ऊर्जा का मात्र १ फीसद ही यह बोट खर्च कर पातें हैं जबकि इंसान इसका ३० फीसद तक बरत लेता है .लेदेकर एक दिन में यह २१ सेंटीमीटर ही खिसक सकता है ।
२००२ में इको -बोट -१ तथा २००४ में इको -बोट- २,अस्तित्व में आया था .पहली पीढ़ियों के ये दोनों बोट्स कार्बनिक कचरे (ओरगेनिक वेस्ट )यथा "डेड फ्लाईज़ "सड़े -गले फलों और चीनी से पावर लेते थे .फ्यूल सेल में माइक -रोब्स की मदद से ही यह इस सड़े गले को सरल रासायनिक प्रति -रूपों में विखंडित करते थे ।
इको बोट -३ थोड़ा तेज़ है .इसकी कार्य क्षमता बेहतर है ।
इससे भी आगे की सोची जा रही है .ब्रिस्टल -रोबोटिक्स की नजर इको -बोट -४ पर है .इसमें अब तक की सबसे सक्षम माइक्रो -बीयल फ्यूल सेल्स स्टेक्स (पाइल्स )काम में ली जायेंगी .रफ्तार के अलावा इतर कचरे का भी ईंधन के बतौर इसमें स्तेमाल किया जा सकेगा .सोचा यह भी जा रहा है पेपर और प्लास्टिक को भी हजम कर जाने वाली पीढ़ी सामने आये इको -बोट्स की .अकार्बनिक कचरा तो हमारे चारों तरफ ही फैला हुआ है .एक तरफ इसे ठिकाने लगाया जाए दूसरी तरफ अपने त्याज्य कचरे से पैदा ईंधन से ही गुज़र बसर की जाए .बोट्स की ऐसी पीढ़ी का इंतज़ार है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ए रोबोट विद एन एपेटाईट फॉर फ़ूड ,साइंटिस्ट्स हेव क्रीयेतिद ए सेल्फ -सस्टेनिंग बोट देट कैन क्रियेट इट्स ओन एनर्जी बाई ईटिंग ,दाइजेस्तिन्ग एंड पूपिंग फ़ूड ,जस्ट लाइक अस .इट कुड एंड आवर दिपेंदेंस ओन बेट्रीज़(साईं -टेक /मुंबई मिरर /जुलाई ३० ,२०१० ,पृष्ठ ३० )

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