बुधवार, 14 जुलाई 2010

कूवत होती है दिमाग में भी चोट से उबरने की ....

इंजरी इज नाट दी एंड ,ह्यूमेन ब्रेन कैन ऋ -वायर इटसेल्फ(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई १४ ,२०१० )।
परम्परा गत सोच को धक्का देती प्रतीत हो सकती है एक नै रिसर्च .ऑस्ट्रेलियाई साइंसदानों ने पता लगया है ,क्षति -ग्रस्त ब्रेन में खुद से ही खुद को री -वायर करने की सिफत रहती है ।
सदमे का मुकाबला कैसे करता है हमारा दिमाग ?कैसे ट्रौमा के प्रति री -एक्ट और रेस्पोंड करता है ,अनुकिर्या दर्शाता है ?खासकर दिमागी हिस्से सेरिब्रल कोर्टेक्स या फिर ग्रे -मैटर की बाहरी परतमें सदमे के दौरान क्या होता है इसकी पड़ताल इन दिनों होबार्ट -बेस्ड (होबार्ट स्थित )मेंज़ेस रिसर्च संस्थान के विज्ञान -कर्मी कर रहें हैं ।
पता चला है ,नर्व सेल्स का एक और समूह (सदमे के खिलाफ रन -नीति के तहत )प्रकिर्या -ओं की री -मोडलिंग करने लगता है एक वैकल्पिक रणनीती के तौर पर .अपना रूपाकार बदलने लगतें हैं न्युरोंस (दिमागी कोशिकाओं का एक और समूह ).दिस इज देयर रेस्पोंस तू इंजरी ।
ऐसा प्रतीत होता है 'सेरिब्रल कोर्टेक्स 'में री -मोडलिंग की क्षमता होती है जो इंजरी के वक्त प्रकट होती है .ऐसे परिवर्तन न्यूरोन स्तर पर दिमाग के स्वस्थ हिस्सों में ही होतें हैं .क्षति -पूर्ती के तौर पर ।
परम्परा गत सोच के मुताबिक़ दिमागी चोट की क्षति -पूर्ती होती ही नहीं है .न्युरोंस डाई फॉर एवर .रिसर्चर अब इसी हीलिंग रेस्पोंस को बढाने ,और भी सक्षम कर लेना चाहतें हैं .इससे आइन्दा दिमागी चोट के इलाज़पर एक एक नैरोशनी ,एक नै दिशा दिमागी इलाज़ को मिल सकती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-इंजरी इज नोट दी एंड ,ह्यूमेन ब्रेन कैन री -वायर इटसेल्फ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया .जुलाई १४ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १९ .).

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