शनिवार, 3 जुलाई 2010

अमरत्व -उन्माद .......

ज़िंदा रहने की ख्वाइश किसकी नहीं होती .मरना कौन चाहता है ?फिर भी मृत्यु एक शास्वत सत्य है ,चिरंतन है .चिन्मय कोई सदैव के लिए रह हो नहीं सकता .फिर भी कुछ लोग है जो अमरत्व प्राप्ति के लिए अपने कायिक शरीर तो कुछ दिमाग को क्रायोनिक्स के माहिरों के हवाले ना सिर्फ रख देना चाहतें हैं .भारी रकम भी खर्च करने को तैयार हैं .इसे अमरत्व -उन्माद (इम्मोर्त्लो -मेनिया )नहीं तो और क्या कहिएगा ?
"क्रिओरुस" एक रसियन कंपनी है जो दिमाग को फ्रीज़ करने रखने की एवज में डॉलर १०,००० तथा पूरी काया के क्रायो -प्रिज़र्वेसन के डॉलर ३०,००० वसूल रही है ।
कई लोग आगे आये हैं जो ऐसा मानतें समझतें हैं हमारा दिमाग एक कंप्यूटर हार्ड -ड्राइव की तरह हैं जिसमे हमारा पूरा व्यक्तित्व रचा बसा है इसे आइन्दा के लिए फ्रीज़ करके रखवा दिया जाए .एक ना एक दिन नेनो -टेक्नोलोजी और मेडिसन की प्रगति ,कटिंग एज टेक्नोलोजी आदमी में फिर से जान दाल देगी .अलबत्ता नाकारा हो चुके शरीर का क्या है ?इसे दफन करना ही भला ।
स्टेम टेक्नोलोजी और क्लिनिकल क्लोनिंग के ज़रिये सब कुछ गढ़ा जाएगा ।
रुसी क्रायोनिक्स (मृत्यु के फ़ौरनबाद काया को फ्रीज़ करके संजोये रहने की कलाकारी )कम्पनी के दनिला मेदवेदेव इसी खाम खयाली में चांदी कूट रहें हैं इस विचार को,इस प्रोपेगेंडा की वकालत करके ।
बेशक कुछ और साइंसदान क्रायोनिक्स के झंडा बर्दारो से सहमत नहीं हैं क्योंकि मुर्दा क्या ज़िंदा को फ्रीज़ करआइन्दा कभी ज़रूर के मुताबिक़ " था -इंग "करने से ,वार्म करने से कुछ नहीं होगा .लेदेकर सेल्स का ही क्रायो -प्रिज़र्वेसन हो सकता है भविष्य के संभावित स्तेमाल के लिए ,किसी भी अंग या पूरी काया का नहीं।
सन्दर्भ -सामिग्री :-होप्स ऑफ़ इम्मोर्तालिती गेट ए बूस्ट विद न्यू -ब्रेक -थ्रूज़ ,आफ्टर लाइफ ?फ्रीज़ ब्रेन तिल ईट फाइंड्स ए न्यू -बॉडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जुलाई ३ ,२०१० )

1 टिप्पणी:

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

हर चीज बिकती है खरीदार होना चाहिए