मौत को भी हँसते देखा है मैंने ,
एक तुम हो कि ज़िंदा भी रोतें हो । -रचनाकार
नन्द मेहता वागीश .१२१८ ,अर्बन एस्टेट गुडगाँव -१२१-001
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा .
बुधवार, 19 जनवरी 2011
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