कविता :"ये मुंबई नहीं बम्बई का बुद्धि जीवी पउवा है ."-नन्द मेहता वागीश ।
ये मुंबई नहीं ,बम्बई का, बुद्धि जीवी पउवा है ,
खा -पीकर कहता है ,आतंकवाद हौवा है ।
मतलब साफ़ है कि आतंकवाद ,कोई असलियत नहीं ,
खुद एशो -इशरत में है ,इसलिए शिकायत नहीं ।
ये वो शख्श है ,जो खुद के सुईं चुभने को राष्ट्रीय आपदा बतलाता है ,
और राष्ट्र के सीने में लगे घावों का ,उपहास उड़ा ता है
इसके पास आंकडें हैं ,ये बताने और जताने के लिए कि कितने लाख सुनामी में मारे गए ,
कितने अमरीकी कार हादसों में मारे गए ,
कितने बीमारी प्राकृतिक आपदाओं से ,रोजमर्रा दम तोड़तें हैं ,अनाम बलाओं से ।
फिर नौ -ग्यारह के सेंटर में तो मरे थे तीन हज़ार से कम ,
तो ऐसी तिथियों का क्या मनाना गम ,
कल यह भी हो सकता है उसका तर्क ,आदमी तो पैदा होता ही है मरने के लिए ।
इसलिए आतंकवाद का हौवा किसलिए ।
इस शख्श के दिल में राष्ट्रीय अपमान का कोई संताप नहीं ,
अलबत्ता पुलिस द्वारा लगाए गए सुरक्षात्मक प्रतिबन्ध के कारण ,
अपनी बेटियों का दोस्तों के साथ नए साल मनाए के लिए ,हार्ड रॉक कैफे न पहुँच पाने का मनस्संतापज़रूर है ।
इसके पास है कुतर्कों का लश्कर ,और स्वयं को कहता है तर्क भास्कर !
बस इतनी सी बात है बाकी तो बुद्धि जीवी कौवे का प्रलाप है ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा
विशेष :मुंबई का कौवा ,बोला आतंकवाद हौवा .
शनिवार, 15 जनवरी 2011
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